सार

अयोध्या जिले के रुदौली विधानसभा क्षेत्र का चुनाव परिणाम अक्सर लोगों को चौंकाता रहा है। यहां के मतदाता भी नेताओं और राजनीतिक दलों के लिए पहेली से कम नहीं है। यहां पर चार बार चुनाव में धर्म का जादू चला बाकियों में ब्रह्मास्त्र कामयाब रहा।

अनुराग शुक्ला

अयोध्या: उत्तर प्रदेश की अयोध्या जिले के रुदौली विधानसभा क्षेत्र का चुनाव परिणाम अक्सर लोगों को चौंकाता रहा है। यहां के मतदाता भी नेताओं और राजनीतिक दलों के लिए पहेली से कम नहीं है। रुदौली में जिले के अन्य विधानसभा क्षेत्रों की तुलना में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। इसके बावजूद अब तक हुए 16 चुनाव में रुदौली वासियों पर सिर्फ 4 बार ही धर्म का जादू चला है। लोगों ने मुस्लिम नेताओं को अपना विधायक चुना है। बाकी अन्य चुनाव में विभिन्न पार्टियां जीतती रहीं है। लोगों का मानना है कि रुदौली हमेशा अबूझ पहेली सी रही है।

एक बार कांग्रेस व तीन बार सपा से मुस्लिम नेता बने विधायक
एक बार कांग्रेस व तीन बार सपा से मुस्लिम नेता रुदौली के विधायक बने। विधानसभा चुनाव के इतिहास में 12 बार ऐसा अवसर आया जब गैर मुस्लिम नेता विधायक बने,यही नहीं पहले और दूसरे विधायक भी जनसंघ के मुकुट बिहारी लाल थे। जबकि 16 में से 12 चुनाव में अल्पसंख्यक वर्ग के 13 नेताओं ने प्रमुख दलों से चुनाव में किस्मत अजमाई। कुल 9 बार ऐसा अवसर रहा जब मुस्लिम नेता चुनाव से दूसरे नंबर पर रहे। इसमें वर्ष 2002 का चुनाव भी है, जब विजेता और पराजित होने वाले दोनों ही उम्मीदवार मुस्लिम थे। 8 मौकों पर अल्पसंख्यक वर्ग के नेता चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे।

रुदौली के मतदाताओं का मन भांपना कभी नहीं रहा आसान 
रुदौली के पहले अल्पसंख्यक विधायक कांग्रेस से चुने गए थे। वर्ष 1985 में हुए चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर महबूब अहमद खान विधायक बने थे। इसके बाद वर्ष 1993 में सपा के टिकट से इश्तियाक अहमद रुदौली से प्रदेश की सर्वोच्च पंचायत में पहुंचे। वर्ष 2002 व 2007 में सपा के टिकट से अब्बास अली जैदी रुश्दी मियां ने जीत प्राप्त की। वर्ष 2002 में रुश्दी मियां ने बसपा के नेता ऐहतराम अली को पराजित किया था। इस चुनाव के इतिहास में वर्ष 2002 पहला अवसर था। जब जीतने और हारने वाले दोनों ही नेता अल्पसंख्यक वर्ग के थे। वर्ष 2012 के चुनाव में रुदौली के मतदाताओं ने एक बार फिर लोगों को चौंका दिया था। इससे पहले वर्ष 1967 के चुनाव में रुदौली के मतदाताओं ने राजनीतिक दलों को भटका दिया था। वर्ष 1957 व 1962 के चुनाव में जनसंघ से विधायक रहे मुकुट बिहारी लाल को वर्ष 1967 में निर्दल उम्मीदवार के तौर पर किस्मत आजमा रहे सी लाल ने पराजित किया था। 

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