सार

उत्तर प्रदेश की राजनीति में नारों की भूमिका हमेशा से ही खास रही है। यूपी के अयोध्या जिले में जब बाबरी विध्वंस के बाद 'मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जयश्री राम, बाकी राम झूठे राम असली राम कांशीराम' नारे ने राजनीति के समीकरण को पूरी तरह से उलट पलट कर दिया था। इस नारे ने देश और प्रदेश की राजनीति में उस जमाने में बड़ा परिवर्तन किया था।

दिव्या गौरव

लखनऊ: आजादी की लड़ाई से लेकर हर छोटे बड़े आंदोलनों में नारे की भूमिका काफी अहम रही है। इसी कड़ी में नब्बे के दशक में उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद 'मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जयश्री राम, बाकी राम झूठे राम असली राम कांशीराम' नारे ने राजनीति के समीकरण उलट पलट दिये थे। राम मंदिर आंदोलन के चरम पर इस नारे का सृजन इटावा में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के पूर्व नेता खादिम अब्बास ने किया था। अंजाने में जन्मे इस नारे ने देश और प्रदेश की राजनीति में उस जमाने में बड़ा परिवर्तन किया था।

खादिम आज बसपा की मुख्य धारा में नहीं है लेकिन वह आज भी कांशीराम से खासे प्रभावित रहे हैं, इसीलिए बसपा से निकाले जाने के बाद आज तक किसी भी दल का हिस्सा नहीं बने हैं। खादिम विधानसभा से लेकर नगर निगम के कई चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली। खादिम ने कौमी तहफफुज्ज कमेटी गठन किया है जिसके वे संयोजक भी हैं। इसके बावजूद वो हर समाजिक कार्यक्रम मे हिस्सेदारी करते हुए देखे जाते हैं। समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव के गृह जिले इटावा के लोगों ने कांशीराम को एक ऐसा मुकाम हासिल कराया जिसकी कांशीराम को अरसे से तलाश थी। कहा जाता है कि 1991 के चुनाव में इटावा मे जबरदस्त हिंसा के बाद चुनाव को दुबारा कराया गया था, तब बसपा सुप्रीमो कांशीराम मैदान में उतरे। मुलायम ने वक्त की नब्ज को समझते हुये कांशीराम की मदद की।

मैनपुरी की सभा में निकला था यह नारा
1991 में हुए लोकसभा के उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी कांशीराम समेत कुल 48 प्रत्याशी मैदान में थे। चुनाव में कांशीराम को एक लाख 44 हजार 290 मत मिले और भाजपा प्रत्याशी लाल सिंह वर्मा को एक लाख 21 हजार 824 मत मिले। मुलायम सिंह की जनता पार्टी से लड़े रामसिंह शाक्य को मात्र 82624 मत ही मिले थे। खादिम बताते हैं कि 1992 में मैनपुरी में हुई एक सभा में जब बोलने के लिए वे मंच पर आए तो अचानक यह नारा उन्होंने लगाया जो बाद में पूरे देश मे गूंजा।

इस नारे ने बना दिया था राजनीतिक माहौल
खादिम के पास कांशीराम से जुड़ी हुई ऐसी तस्वीरें हैं जो उनका बसपा संस्थापक के प्रति प्रेम उजागर करती हैं। उन्होंने बताया कि कांशीराम और मुलायम सिंह के बीच हुए समझौते के तहत कांशीराम ने अपने लोगों से ऊपर का वोट हाथी और नीचे का वोट हलधर किसान चिह्न के सामने देने के लिये कह दिया था। विवादित ढांचा टूट चुका था, ऐसे मे इस नारे ने काफी कुछ राजनैतिक माहौल बना दिया था।

कांशीराम ने कराया था सपा का गठन: खादिम
खादिम की मानें तो कांशीराम ने अपने शर्तों के अनुरूप मुलायम सिंह यादव से खुद की पार्टी यानि समाजवादी पार्टी गठन करवाया और तालमेल किया। कांशीराम ने एक साक्षात्कार में कहा था कि यदि मुलायम सिंह से वह हाथ मिला लें तो उत्तर प्रदेश से सभी दलों का सूपड़ा साफ हो जाएगा। मुलायम को उन्होंने केवल इसीलिए चुना क्योंकि वही बहुजन समाज के मिशन का हिस्सा था। इसी इंटरव्यू को पढ़ने के बाद मुलायम सिंह यादव दिल्ली में कांशीराम से मिलने उनके निवास पर गए थे। उस मुलाक़ात में कांशीराम ने नये समीकरण के लिए मुलायम सिंह को पहले अपनी पार्टी बनाने की सलाह दी और 1992 में मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी का गठन किया।

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