सार
धौरहरा में भाजपा और बसपा के बड़े नेताओं के सपा में शामिल होने के बाद समीकरण नए तरीके से बनने बिगड़ने लगे हैं। पार्टी में नए शामिल दोनों नेताओं के समर्थकों में खुशी की लहर है। तो वहीं समाजवादी पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं में नाराजगी भी है। धौरहरा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से समाजवादी पार्टी से यशपाल चौधरी 1993 और 2002 में चुनाव जीते थे। पिछले साल चौधरी के निधन के बाद से उनके बेटे वरुण चौधरी ने राजनैतिक विरासत संभाली। वरुण लगातार क्षेत्र में सक्रिय भी थे।
लखीमपुर खीरी: कहावत है कि भंडारे में गए थे। तो वहां पूड़ियाँ खत्म हो गईं। बाहर निकले तो चप्पल चोरी हो गए। ऐसा की कुछ हुआ धौरहरा के भाजपा विधायक बाला प्रसाद अवस्थी के साथ। भाजपा में टिकट कटता देख बाला प्रसाद अवस्थी भारतीय जनता पार्टी छोड़ टिकट की उम्मीद में समाजवादी पार्टी में शामिल हुए थे। शुक्रवार को सपा ने प्रत्याशियों की तीसरी सूची जारी की। तो बाला के हिस्से निराशा आई। बाला अपने बेटे राजीव अवस्थी लालू के लिए टिकट की मांग कर रहे थे। पर उनकी जगह सपा ने वरुण चौधरी पर दांव लगाया है। वरुण समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे पूर्व विधायक/मंत्री यशपाल चौधरी के बेटे हैं।
बाला का राजनैतिक कैरियर
बाला ने अपनी राजनैतिक पारी का आगाज भाजपा से शुरू किया था। 1991 में भाजपा के टिकट पर जीत हासिल कर वे विधानसभा पहुंचे। जिसके बाद 3 चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। तो 2007 में उन्होंने बसपा का दामन थाम लिया। बसपा ने बाला को टिकट दिया और वे चुनाव जीते। इसके बाद 2012 क परिसीमन में पहली बार अनारक्षित हुई जिले की मोहम्मदी सीट पर बाला ने बसपा के टिकट पर किस्मत आजमाई और वे तीसरी बार विधायक बने। 2017 में भाजपा की मजबूत स्थिति देख बाला ने एक बार फिर से बीजेपी में इंट्री मारी औऱ धौरहरा से चुनाव जीते। 2022 के चुनाव में बाला शायद राजनीति की कूटनीति समझ नहीं पाए। बाला ने भाजपा छोड़ सपा का दामन इस उम्मीद से थामा की समाजवादी पार्टी उनके बेटे लालू को धौरहरा से टिकट देगी। मगर अपने लंबे राजनैतिक अनुभव में बाला यहां गच्चा खा गए।
धौरहरा में भाजपा और बसपा के बड़े नेताओं के सपा में शामिल होने के बाद समीकरण नए तरीके से बनने बिगड़ने लगे हैं। पार्टी में नए शामिल दोनों नेताओं के समर्थकों में खुशी की लहर है। तो वहीं समाजवादी पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं में नाराजगी भी है। धौरहरा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से समाजवादी पार्टी से यशपाल चौधरी 1993 और 2002 में चुनाव जीते थे। पिछले साल चौधरी के निधन के बाद से उनके बेटे वरुण चौधरी ने राजनैतिक विरासत संभाली। वरुण लगातार क्षेत्र में सक्रिय भी थे।
धौरहरा का जातीय समीकरण
जातीय समीकरणों की बात करें तो धौरहरा ब्राह्मण बाहुल्य क्षेत्र है। इसका फायदा उठाने के लिए बीजेपी ने विनोद शंकर अवस्थी पर दांव लगाया है। धौरहरा में कुर्मी बिरादरी का करीब 40,000 वोट है। समाजवादी पार्टी में यशपाल चौधरी का यह बेस वोट रहा है। दलित बिरादरी की बात करें। तो यह अब तक बीएएसपी का कैडर वोट रहा है। मगर धौरहरा में बसपा का मजबूत नेतृत्व न होने से वोटों का बिखराव होगा। बसपा के शमशेर बहादुर मुस्लिमों के अच्छा खासा वोट पाते रहे हैं। इस बार उनके मैदान में हटने से इसका फायदा सपा को होता दिख रहा है। अन्य पिछड़ा वोट में सपा औऱ भाजपा की सेंधमारी हमेशा की तरह बनी रहेगी। कुलजमा धौरहरा का चुनाव पार्टियों से ज्यादा जातियों के प्रभाव से होगा।
Inside story: धौरहरा में बिगड़ा जातीय समीकरण, सपा में शामिल हो गए बीजेपी-बसपा विधायक