सार

अगस्त्य मुनि ने भी यहां विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी और इन्हीं की अर्चना से श्रीवशिष्ठजी तीनों लोकों में पुजित हुए तथा राजर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाए।
 

वाराणसी (Uttar Pradesh) । गंगा किनारे बसी काशी नगरी को बाबा विश्वनाथ की नगरी भी कहा जाता है। इस नगरी में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में एक विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग शहर के बीच गंगा किनारे स्थित है। मंदिर के ऊपर सोने का छत्र लगा हुआ है, जो भगवान शिव को समर्पित है। मान्यता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

पुराणों में इस कहानी का उल्लेख  
पुराणों में इस ज्योतिर्लिंग का उल्लेख है, जिसके मुताबिक भगवान शंकर हिम पुत्री पार्वती जी से विवाह करके कैलाश पर्वत पर ही रहने लगे थे। लेकिन, पिता के घर में ही विवाहित जीवन बिताना पर्वती जी को अच्छा नहीं लगता था। एक दिन भगवान शिव से उन्होंने कहा आप मुझे अपने घर ले चलिए, अपने पिता के घर रहना मुझे अच्छा नहीं लगता। सभी लड़कियां शादी के बाद पति के घर जाती हैं। मुझे घर में ही रहना पड़ रहा है। भगवान शिव ने उनके मन की ये बात स्वीकार कर ली और वह माता वह पार्वती के साथ अपनी पवित्र नगरी काशी में आ गए। यहां आकर वह विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए, जहां उन्हें विश्वनाथ या विश्ववेश्वर नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है ब्रह्मांड का शासक।

ये भी है मान्यता
हिंदू धर्म में कहते हैं कि प्रलयकाल में भी इसका लोप नहीं हुआ था। उस समय भगवान शंकर इस नगरी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लिए थे और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार दिए। यही नहीं, आदि सृष्टि स्थली भी यहीं भूमि बतलायी जाती है। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने का कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए थे। अगस्त्य मुनि ने भी विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी और इन्हीं की अर्चना से श्रीवशिष्ठजी तीनों लोकों में पुजित हुए तथा राजर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाए।

विदेशों से आते हैं लोग
इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, संत एकनाथ रामकृष्ण परमहंस, स्‍वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्‍वामी तुलसीदास, देश-विदेश से लोग आते हैं। बता दें कि विश्वनाथ मंदिर में ज्योर्तिलिंग अभिषेक के लिए छ: श्रेणियों में बांटा गया है। जहां भक्तों को अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार अभिषेक करा सकतें हैं। इसमें साधारण रूद्राभिषेक 450 रूपये में एक शास्त्री कराते हैं। सबसे बड़ा महा-रूद्राभिषेक है जिसका मूल्य 57100 रूपये है जो 11 शास्त्री मिलकर 11 दिनों में पूरा कराते हैं।