सार
अमेरिका समर्थित एसडीएफ का कहना है कि आईएसआईएस से जुड़े स्लीपर सेल के सदस्य आसपास के क्षेत्र में घुसपैठ करने में कामयाब रहे और उनके आंतरिक सुरक्षा बलों से भिड़ गए।
नई दिल्ली। पूरी दुनिया में आतंकी यमदूत के रूप में पहचाने जाने वाले इस्लामिक स्टेट (IS) ने एक बार फिर तबाही मचानी शुरू कर दी है। एक ही दिन में 29 हत्याएं करके एक बार फिर दुनिया को आईएस ने डराने की कोशिश की है। ईराक से लेकर सीरिया तक आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (Islamic State) ने हत्याओं को अंजाम दिया है। इसमें इराक के 11 सैनिकों की हत्या भी शामिल है।
गुरुवार को दिया इन हत्याओं को अंजाम
इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने गुरुवार को बगदाद (Bagdad) के उत्तर में पहाड़ी इलाके में सेना के बैरक पर हमला किया। इसमें 11 सैनिकों की मौत हो गई। इराकी सुरक्षा अधिकारियों ने बताया कि हमला अल-अजीम जिले में हुआ, जो दियाला प्रांत में बकूबा के उत्तर में खुला इलाका है। सेना के अधिकारियों के अनुसार इस्लामिक स्टेट समूह के आतंकवादी स्थानीय समयानुसार तड़के 3 बजे बैरक में घुस गए। कैंप में सैनिकों की गोली मारकर हत्या कर दी।
इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों का जेल पर हमला
दूसरी तरफ, इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों ने अपने साथियों को छुड़ाने के लिए सीरिया की अल-हसाका जेल पर हमला किया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस हमले में IS लड़ाकों ने कुर्द सुरक्षा बलों की हत्या कर दी। एक मानवाधिकार संगठन के मुताबिक, आईएसआईएस के हमले के बाद कुछ कैदी भागने में सफल रहे।
IS लड़ाकों को छुड़ाने के लिए जेल पर हमला
सीरिया में कुर्द नेतृत्व वाली सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज (एसडीएफ) ने बयान में कहा कि स्वघोषित इस्लामिक आतंकवादी इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों ने अपने साथियों को छुड़ाने के लिए जेल पर हमला किया। अमेरिका समर्थित एसडीएफ का कहना है कि आईएसआईएस से जुड़े स्लीपर सेल के सदस्य आसपास के क्षेत्र में घुसपैठ करने में कामयाब रहे और उनके आंतरिक सुरक्षा बलों से भिड़ गए। यह घटना घवेरन जेल के एंट्री गेट पर कार बम विस्फोट के साथ हुई, जो उत्तर-पूर्वी सीरिया में कुर्द अधिकारियों द्वारा नियंत्रित अर्ध-स्वायत्त क्षेत्र में आईएस लड़ाकों को रखने वाली सबसे बड़ी सुविधाओं में से एक है।
आईएस के 12,000 से अधिक आतंकी बंद
इन जेलों में इस्लामिक स्टेट के 12,000 से अधिक संदिग्ध आतंकी बंद हैं। बंदी फ्रांस से लेकर ट्यूनीशिया तक के देशों से हैं, लेकिन उन देशों के अधिकारी सार्वजनिक प्रतिक्रिया के डर से उन्हें वापस लेने से हिचक रहे हैं।
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