रत्न शास्त्र में शनि के लिए नीलम, राहू के लिए गोमेद और केतु के लिए लहसुनिया पहनने की सलाह दी जाती है। शनि, राहु और केतु तीनों ग्रह खराब हों तो तीन रत्न पहनने की जगह एक ही रत्न पहनाया जाता है, जिससे तीनों ग्रहों की पीड़ा से एक साथ मुक्ति मिल जाती है। वह रत्न है लाजवर्त।
ज्योतिष शास्त्र में केतु अशुभ यानी पाप ग्रह के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि जब केतु की महादशा या अन्तर्दशा आती है तो व्यक्ति को कोई-न-कोई परेशानी अवश्य आती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर ग्रह का एक विशेष रत्न होता है, जिसे पहनने से उस ग्रह से संबंधित शुभ फलों में वृद्धि होती है और दोषों का नाश होता है। ऐसा ही एक रत्न है लहसुनिया।
ज्योतिष में कुल नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि और राहु-केतु बताए गए हैं। इन नौ ग्रहों में शनि, राहु-केतु को क्रूर ग्रह माना गया है। इन ग्रहों के दोष दूर करने के लिए शिवजी की पूजा सबसे सरल और कारगर उपाय है।
जब कोई ग्रह लगातार अशुभ फल दे रहा हो तो कुछ आसान उपाय कर उसके कुप्रभाव को कम किया जा सकता है। ये उपाय पालतू जानवरों व पशु-पक्षियों से जुड़े भी हो सकते हैं।
जब किसी की कुंडली में केतु अशुभ स्थान पर होता है तो उस व्यक्ति के जीवन में कुछ भी अच्छा नहीं होता। उसे बुरी आदतें लग जाती हैं, जिसके कारण उसके मान-सम्मान में भी कमी आती है और जमा पूंजी का भी नाश होता है।
वर्तमान में धनु राशि में गुरू, केतु, सूर्य और शनि हैं। इन ग्रहों के कारण चतुर्ग्रही योग बन रहा है। इससे पहले धनु राशि में शनि और केतु ही थे। फिर शुक्र के आने से चर्तुग्रही योग बन गया था।
21 नवंबर, गुरुवार को शुक्र राशि बदलकर धनु राशि में आ चुका है। इस राशि में पहले से ही शनि, केतु और बृहस्पति हैं। धनु राशि में चार ग्रह होने से चतुर्ग्रही योग बन रहा है।
ज्योतिष शास्त्र में केतु को पाप ग्रह माना गया है। इसके बुरे प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में कई संकट आते हैं।
शिवपुराण के अनुसार शिव पूजा में शमी के पत्तों का विशेष महत्व है। ये पेड़ पूजनीय और पवित्र है।