सार

रत्न शास्त्र में शनि के लिए नीलम, राहू के लिए गोमेद और केतु के लिए लहसुनिया पहनने की सलाह दी जाती है। शनि, राहु और केतु तीनों ग्रह खराब हों तो तीन रत्न पहनने की जगह एक ही रत्न पहनाया जाता है, जिससे तीनों ग्रहों की पीड़ा से एक साथ मुक्ति मिल जाती है। वह रत्न है लाजवर्त।

उज्जैन.  रत्न शास्त्र में शनि के लिए नीलम, राहू के लिए गोमेद और केतु के लिए लहसुनिया पहनने की सलाह दी जाती है। शनि, राहु और केतु तीनों ग्रह खराब हों तो तीन रत्न पहनने की जगह एक ही रत्न पहनाया जाता है, जिससे तीनों ग्रहों की पीड़ा से एक साथ मुक्ति मिल जाती है। वह रत्न है लाजवर्त।

कैसा होता है लाजवर्त?
लाजवर्त एक ठोक, चिकना, अपारदर्शी, गाढ़े नीले रंग का रत्न होता है। इसमें नीले रंग के साथ हल्के नीले रंग की कुछ धारियां भी पाई जाती हैं। लाजवर्त को शनि, राहू और केतु की पीड़ा के समय धारण किया जाता है। यदि कुंडली में ये तीनों ग्रह दूषित हों, पीड़ा दे रहे हों तो इसे धारण करने से बहुत लाभ होता है।

लाजवर्त धारण करने के लाभ
1.
लाजवर्त शनि और राहू-केतु के समस्त दोषों और बुरे प्रभावों को समाप्त करता है। यदि बार-बार दुर्घटनाएं हो रही हों तो लाजवर्त धारण करने से लाभ पहुंचता है।
2. यह आकस्मिक रूप से होने वाली धन हानि, स्वास्थ्य समस्याओं से बचाव करता है। लाजवर्त बुरी नजर, जादू-टोना, नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में मदद करता है।
3. राहू-केतु के कारण पितृ दोष का निर्माण भी होता है। लाजवर्त पहनने से पितृ दोष शांत होता है। व्यापार-व्यवसाय या नौकरी में बाधा आ रही हो तो लाजवर्त धारण करना उचित रहता है।
4. यह दिमाग को शांत रखने का काम भी करता है। मानसिक स्थिरता लाजवर्त से आती है। इसे पहनने से आर्थिक तंगी दूर होती है, पैसों के आगमन में आ रही रूकावटें दूर होती हैं।
5. जिनकी जन्म कुंडली में सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण दोष है उन्हें भी यह पहनना चाहिए। घर में बरकत नहीं रहती, सदस्यों को तनाव-डिप्रेशन रहता है तो लाजवर्त की माला को घर की पश्चिम दिशा में लटकाएं।

कैसे धारण करें लाजवर्त?
लाजवर्त को धारण करने का सबसे शुभ दिन शनिवार है। इसे चांदी की अंगूठी या लॉकेट में बनवाकर पहना जा सकता है। लाजवर्त के मोतियों की माला भी गले में धारण की जा सकती है या इसका ब्रेसलेट भी पहना जा सकता है। इसे दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करना चाहिए। धारण करने से पहले अंगूठी या लॉकेट को सरसो या तिल के तेल में पांच घंटे तक डुबोकर रखें। इसके बाद नीले रंग के वस्त्र पर रखकर ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम: मंत्र की एक माला जाप करें। धूप-दीप, नैवेद्य करें। इसे कपड़े से पोंछकर धारण करें।

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