सार
अचला सप्तमी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अचला सप्तमी मनाते हैं।
उज्जैन. अचला सप्तमी को रथ सप्तमी और भानु सप्तमी भी कहते हैं। इस बार अचला सप्तमी 19 फरवरी, शुक्रवार को है। 18 फरवरी की सुबह 8.17 मिनट से सप्तमी तिथि आरंभ होगी, जो 19 फरवरी की सुबह 10.58 मिनट तक रहेगी।
अचला सप्तमी का महत्व
- अचला सप्तमी पर पवित्र गंगा या नदी में स्नान करना का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान सूर्य की उपासना करने और व्रत नियमों का पालन करने से पापों से मु्क्ति मिलती है।
- अचला सप्तमी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने से सभी प्रकार की बीमारियों से मुक्ति मिलती है और अरोग्य होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- मान्यता है कि इस दिन भगवान सूर्य की पूजा करके फलाहार करने वाले व्यक्ति को पूरे साल सूर्य देव का व्रत और उपासना करने का पुण्य मिलता है।
- अचला सप्तमी के महत्व का वर्णन स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को कहा था। धर्मग्रंथों के अनुसार इस दिन यदि विधि-विधान से व्रत व स्नान किया जाए तो संपूर्ण माघ मास के स्नान का पुण्य मिलता है।
- व्रत के रूप में इस दिन नमक रहित एक समय एक अन्न का भोजन अथवा फलाहार करने का विधान है।
- एक मान्यता यह भी है कि अचला सप्तमी व्रत करने वाले को वर्षभर रविवार व्रत करने का पुण्य प्राप्त हो जाता है।
अचला सप्तमी व्रत की कथा इस प्रकार है…
मगध देश में इंदुमती नाम की एक वेश्या रहती थी। एक दिन उसने सोचा कि यह संसार तो नश्वर है फिर किस प्रकार यहां रहते हुए मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है? यह सोच कर वह वेश्या महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में चली गई और उनसे कहा- मैंने अपने जीवन में कभी कोई दान, तप, जाप, उपवास आदि नहीं किए हैं। आप मुझे कोई ऐसा व्रत बतलाएं जिससे मेरा उद्धार हो सके। तब वशिष्ठजी ने उसे अचला सप्तमी स्नान व व्रत की विधि बतलाई। वेश्या ने विधि-विधान पूर्वक अचला सप्तमी का व्रत व स्नान किया, जिसके प्रभाव से वह वेश्या बहुत दिनों तक सांसारिक सुखों का उपभोग करती हुई देहत्याग के पश्चात देवराज इंद्र की सभी अप्सराओं में प्रधान नायिका बनी।