सार

3 जनवरी, सोमवार से पौष महीने का शुक्ल पक्ष प्रारंभ हो जाएगा। ज्योतिष शास्त्र में इसका विशेष महत्व है क्योंकि शुक्ल पक्ष शुरू होते ही चंद्रमा की आकार बढ़ने लगता है, इसलिए ये समय शुभ कार्य के लिए अच्छा माना जाता है। पौष मास का शुक्ल पक्ष 17 जनवरी, सोमवार तक रहेगा।

उज्जैन. पौष मास का शुक्ल पक्ष भौगोलिक, धार्मिक और सेहत के नजरिये से भी बहुत खास है। इन दिनों सूर्य अपने ही नक्षत्र यानी उत्तराषाढ़ में आ जाता है। साथ ही उत्तरायण हो जाता है। दिन का समय बड़ने की शुरुआत इसी दौरान होती है। इस तरह सूर्य के उत्तरायण होने से मौसमी बदलाव वाला समय होता है। इसलिए हिंदू धर्म में सेहत का ध्यान रखते हुए पौष महीने के शुक्लपक्ष के तीज-त्योहारों की परंपरा बनाई है।

क्यों खास ये 15 दिन?
- पौष महीने के शुक्लपक्ष में सूर्य पूजा के साथ ही तीर्थ स्नान और दान करने की भी परंपरा बनाई है। आयुर्वेद के जानकारों का कहना है कि इन दिनों ज्यादा समय सूर्य के सामने बीताने से सेहत अच्छी रहती है। 
- वहीं, पौष महीने के शुक्लपक्ष में जरूरतमंद लोगों को गरम कपड़े, गुड़, तिल और अन्य खाने की चीजों के साथ ही जूत-चप्पल भी दान करना चाहिए। इन दिनों विनायक चतुर्थी, पुत्रदा एकादशी, लोहड़ी, मकर संक्रांति और शाकंभरी पूर्णिमा जैसे खास पर्व मनाए जाते हैं। 
- इसलिए पद्म, स्कंद और विष्णु पुराण सहित अन्य ग्रंथों में पौष महीने के शुक्लपक्ष को बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है।

पौष शुक्लपक्ष में मनाए जाएंगे ये त्योहार
विनायक चतुर्थी (Vinayaka Chaturthi 2022) (6 जनवरी, गुरुवार)
पौष महीने के शुक्लपक्ष का चौथा दिन गणेश पूजा के लिए खास होता है। इस दिन विनायक चतुर्थी व्रत किया जाता है। इसमें गणेशजी के साथ भगवान शिव-पार्वती की भी पूजा की जाती है। वहीं, रात को चंद्रमा को अर्घ्य देकर ये व्रत खोला जाता है। सुहागन महिलाओं के लिए ये दिन खास होता है।

पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi 2022) (13 जनवरी, गुरुवार)
ये एकादशी अमूमन अंग्रेजी कैलेंडर की पहली एकादशी होती है। जो कि पौष महीने के शुक्लपक्ष में आती है। इस दिन भगवान विष्णु के नारायण रूप की पूजा करने का विधान है। खरमास के दौरान आने से इस एकादशी का महत्व और बढ़ जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत में तिल का इस्तेमाल किया जाता है। पुराणों के मुताबिक इस दिन पानी में तिल डालकर नहाने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं।

लोहड़ी (Lohri 2022) (13 जनवरी, गुरुवार)
लोहड़ी पर्व खासतौर से सूर्य और अग्नि देवता को समर्पित है। इस दिन नई फसलों का कुछ हिस्सा अग्नि को समर्पित करने का भी विधान है। इस दिन लोहड़ी की अग्नि में तिल, रेवड़ियां, मूंगफली, गुड़ और गजक भी समर्पित किया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से देवताओं तक भी फसल का कुछ हिस्सा पहुंचता है। मान्यता है कि अग्नि देव और सूर्य को फसल चढ़ाना उनके प्रति श्रद्धापूर्वक आभार प्रकट करना होता है।

मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2022) (14 जनवरी, शुक्रवार)
इस दिन सूर्य धनु से मकर राशि में आ जाता है। इस दिन को पुराणों और अन्य ग्रंथों में महापर्व कहा गया है। सूर्य के मकर राशि में आने से उत्तरायण शुरू हो जाता है। इस पर्व के साथ ही खरमास के खत्म होने से शादियां और गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कामों की शुरुआत हो जाती है। मकर संक्रांति पर्व पर तीर्थ स्नान के बाद सूर्य पूजा और जरूरतमंद लोगों को दान देने की परंपरा है।

पौष पूर्णिमा (17 जनवरी, सोमवार)
पौष महीने की पूर्णिमा बहुत ही खास मानी गई है। इस दिन को शाकंभरी पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है। इसे पर्व कहा जाता है। इस दिन देवी के शाकंभरी रूप की पूजा करने का विधान है। देवी पूजा के बाद जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाया जाता है और अन्य जरूरी चीजों का दान किया जाता है। पौष महीने की पूर्णिमा पर तीर्थ स्नान करने से जाने-अनजाने मंन हुए पाप खत्म हो जाते हैं। इस पर्व पर पितरों के लिए किए गए दान से पितृ संतुष्ट होते हैं।

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