सार

इस बार 16 दिसंबर को धनु संक्रांति पर गुरुवार को महीने का दूसरा प्रदोष व्रत है। शिव और स्कंद पुराण के मुताबिक अगहन महीने की तेरहवीं तिथि यानी त्रयोदशी पर भगवान शिव की विशेष पूजा से हर तरह की परेशानी दूर हो जाती है।

उज्जैन. त्रयोदशी की पूजा प्रदोष काल यानी सूर्यास्त से तकरीबन 90 मिनिट तक के बीच की जाती है। गुरुवार को त्रयोदशी होने से इस दिन गुरु प्रदोष का योग बन रहा है। साथ ही इस दिन धनु संक्रांति पर्व भी है। इस संयोग में शिव पूजा से दुश्मनों पर जीत होती है और पितरों को तृप्ति मिलती है।

31 दिसंबर को भी प्रदोष व्रत
ज्योतिषियों के अनुसार, 31 दिसंबर को प्रदोष व्रत रहेगा। इस दिन शुक्र प्रदोष का संयोग बन रहा है। इस महीने 2 दिसंबर फिर 16 तारीख को प्रदोष व्रत है। इस तरह साल के आखिरी महीने में 3 बार प्रदोष व्रत किया जाएगा। शिव पूजा के साथ ही इस साल की समाप्ति होना भी अपने आप में शुभ संयोग है।

इस समय करें प्रदोष पूजा
पुराणों और ज्योतिष ग्रंथों के मुताबिक प्रदोष व्रत में सूर्यास्त के बाद तकरीबन 90 मिनिट के समय को प्रदोष काल कहा जाता है। इस दौरान भगवान शिव-पार्वती की विशेष पूजा की परंपरा है। प्रदोष काल में की गई पूजा से शारीरिक, मानसिक और आर्थिक परेशानियां भी दूर हो जाती हैं। इस बार गुरुवार का शुभ संयोग बनने पर शिव पूजा का कई गुना शुभ फल मिलेगा।

ये है पूजा विधि
सूर्यास्त होने के पहले नहा लें। इसके बाद पूजा की तैयारी करें। प्रदोष काल शुरू होने पर भगवान शिव का अभिषेक करें। इसके लिए पंचामृत का इस्तेमाल भी करना चाहिए। फिर चंदन, अक्षत, अबीर-गुलाल, बिल्वपत्र, धतूरा, मदार के फूल और अन्य पूजा सामग्री चढ़ाएं। इसके बाद भगवान शिव की धूप व दीपक से आरती करें। महादेव को भोग लगाएं।

ये है व्रत विधि
इस दिन सूर्योदय से पहले नहा लें। फिर शिव मंदिर या घर पर ही पूजा स्थान पर बैठकर हाथ में जल लें और प्रदोष व्रत के साथ शिव पूजा का संकल्प लें। इसके बाद शिवजी की पूजा करें। फिर पीपल में जल चढ़ाएं। दिनभर प्रदोष व्रत के नियमों का पालन करें। यानी शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह सात्विक रहें। भोजन न करें। फलाहार कर सकते हैं। फिर शाम को महादेव की पूजा और आरती के बाद प्रदोष काल खत्म होने पर यानी सूर्यास्त से 72 मिनिट बाद भोजन कर सकते हैं।