सार

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को बलदाऊ जयंती मनाई जाती है। इसे हरछठ भी कहते हैं। 

उज्जैन. मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म इसी तिथि पर हुआ था। इस बार ये पर्व 9 अगस्त, रविवार को है। इस अवसर पर हम आपको भगवान बलराम से जुड़ी कुछ रोचक बातें बता रहे हैं।

बलराम ने उखाड़ लिया था हस्तिनापुर
श्रीमद्भागवत के अनुसार, दुर्योधन की पुत्री का नाम लक्ष्मणा था। विवाह योग्य होने पर दुर्योधन ने उसका स्वयंवर किया। उस स्वयंवर में भगवान श्रीकृष्ण का पुत्र साम्ब भी गया। वह लक्ष्मणा के सौंदर्य पर मोहित हो गया और स्वयंवर से उसका हरण कर ले गया। कौरवों ने उसका पीछा किया और बंदी बना लिया। यह बात जब यदुवंशियों को पता चली तो वे कौरवों के साथ युद्ध की तैयारी करने लगे, लेकिन श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम ने उन्हें रोक दिया और स्वयं कौरवों से बात करने हस्तिनापुर आए।
यहां आकर उन्होंने कौरवों से साम्ब व लक्ष्मणा को द्वारिका भेजने के लिए कहा। तब कौरवों ने उनका खूब अपमान किया। क्रोधित होकर बलराम ने अपने हल से हस्तिनापुर को उखाड़ दिया और गंगा नदी की ओर खींचने लगे। कौरवों ने जब देखा कि बलराम तो हस्तिनापुर को गंगा में डूबाने वाले हैं तब उन्होंने साम्ब व लक्ष्मणा को छोड़ दिया और बलराम से माफी मांग ली।

जिसे बचाया बाद में उसी का वध कर दिया बलराम ने
जब भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का हरण किया तब रुक्मिणी का भाई रुक्मी उन्हें रोकने आया। रुक्मी और श्रीकृष्ण में युद्ध हुआ। अंत में श्रीकृष्ण ने रुक्मी को पराजित कर दिया। श्रीकृष्ण उसका वध करना चाहते थे, लेकिन बलराम ने उन्हें रोक दिया। तब श्रीकृष्ण ने रुक्मी के दाढ़ी-मूंछ व सिर के बालों को कई स्थानों से मूंड़कर उसे कुरूप बना कर छोड़ दिया।
रुक्मी की पुत्री रुक्मवती का विवाह श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के साथ हुआ था। इसके बाद रुक्मी ने अपनी बहन रुक्मिणी को प्रसन्न करने के लिए अपनी पौत्री रोचना का विवाह श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से कर दिया, लेकिन मन ही मन वह श्रीकृष्ण से बैर रखता था। अनिरुद्ध-रोचना के विवाह में रुक्मी ने बलराम को चौसर खेलने के लिए आमंत्रित किया। हारने पर भी रुक्मी कहने लगा कि मैं जीत गया। ऐसा कहते हुए वह बलरामजी की हंसी उड़ाने लगा। तब बलरामजी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने रुक्मी का वध कर दिया।

जब बलराम ने किया राक्षस का वध
जब श्रीकृष्ण व बलराम वृंदावन में रहते थे। वहां से थोड़ी ही दूर एक बड़ा भारी वन था। उसमें धेनुकसुर नाम का दैत्य रहता है। एक बार श्रीकृष्ण और बलराम अपने मित्रों के साथ उस वन में खेलने पहुंच गए। जब धेनुकासुर ने उन्हें देखा तो श्रीकृष्ण व बलराम को मारने के दौड़ा। बलराम ने धेनुकासुर को देख लिए और अपने एक ही हाथ से उसके दोनों पैर पकड़ लिए और उसे आकाश में घुमाकर एक ताड़ के पेड़ पर दे मारा। घुमाते समय ही उस दैत्य के प्राण निकल गए।