सार
पुरुषोत्तम यानी अधिक मास में भागवत कथा सुनने का विशेष महत्व धर्म ग्रंथों में बताया गया है। इसके साथ ही श्रीमद्भागवत का पाठ किया जाए तो उसका अनंत पुण्य फल मिलता है।
उज्जैन. पुरुषोत्तम महीने में चतु:श्लोकी भागवत मंत्र पढ़ने से ही पूरी श्रीमद्भागवत पाठ का फल मिल जाता है। भगवान विष्णु ने ब्रह्माजी को 4 श्लोक सुनाए थे। फिर ब्रह्माजी ने नारद जी को और उन्होंने व्यासजी को सुनाए। व्यास जी ने उन्हीं 4 श्लोकों से ही 18000 श्लोक का श्रीमद्भागवत महापुराण बना दिया। भगवान विष्णु के ही मुंह से निकले उन 4 श्लोक को ही चतु:श्लोकी भागवत कहा जाता है। पुरुषोत्तम माह में इनको पढ़ने से ही हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। ये मंत्र स प्रकार हैं…
मंत्र
अहमेवासमेवाग्रे नान्यद् यत् सदसत् परम्।
पश्चादहं यदेतच्च योऽवशिष्येत सोऽस्म्यहम् ॥(1)
ऋतेऽर्थं यत् प्रतीयेत न प्रतीयेत चात्मनि।
तद्विद्यादात्मनो मायां यथाऽऽभासो यथा तमः ॥(2)
यथा महान्ति भूतानि भूतेषूच्चावचेष्वनु।
प्रविष्टान्यप्रविष्टानि तथा तेषु न तेष्वहम्॥(3)
एतावदेव जिज्ञास्यं तत्त्वजिज्ञासुनाऽऽत्मनः।
अन्वयव्यतिरेकाभ्यां यत् स्यात् सर्वत्र सर्वदा॥(4)
अर्थ- श्री भगवान कहते हैं - सृष्टि की शुरुआत से पहले केवल मैं ही था। सत्य भी मैं था और असत्य भी मैं था। मेरे अलावा कुछ भी नहीं था। सृष्टि खत्म हो जाने के बाद भी सिर्फ मैं ही रहता हूं। यह चर-अचर सृष्टि स्वरूप केवल मैं हूं और जो कुछ इस सृष्टि में दिव्य रूप से है वह मैं हूं। प्रलय होने के बाद जो कुछ बचा रहता है वह भी मैं ही होता हूं।
मूल तत्त्व आत्मा है जो दिखाई नहीं देती है। इसके अलावा सत्य जैसा जो कुछ भी दिखता है वह सब माया है। आत्मा के अलावा जो भी आभास होता है वो अन्धकार और परछाई के समान झूठ है।
जिस प्रकार पंच महाभूत यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश संसार की छोटी या बड़ी सभी चीजों में होते हुए भी उनसे अलग रहते हैं। उसी तरह मैं आत्म स्वरूप में सभी में होते हुए भी सबसे अलग रहता हूं।
आत्म-तत्त्व को जानने की इच्छा रखने वालों के लिए केवल इतना ही जानने योग्य है कि सृष्टि की शुरुआत से सृष्टि के अंत तक तीनों लोक (स्वर्गलोक, मृत्युलोक, नरकलोक) और तीनों काल (भूतकाल, वर्तमानकाल, भविष्यकाल) में जो हमेशा एक जैसा रहता है। वही आत्म-तत्त्व है।
मंत्र जाप की विधि
- अधिक मास में रोज सुबह जल्दी उठकर नहाएं और पीले कपड़ें पहनें।
- इसके बाद भगवान की मूर्ति या तस्वीर के सामने आसन लगाकर बैठ जाएं।
- फिर नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र बोलते हुए भगवान विष्णु की पूजा करें।
- भगवान की मूर्ति पर जल, फूल और अन्य सुगंधित चीजें चढ़ाएं।
- इसके बाद ऊपर बताए गए चार मंत्र बोलें।
- फिर भगवान को नैवेद्य लगाकर प्रणाम करें।