सार

मान्यता है कि प्रभु यीशु ने ही ईसाई धर्म की स्थापना की। ईसाई धर्म के प्रमुख ग्रंथों बाइबिल और न्यू टेस्टामेंट के आधार पर ईसा मसीह के प्रारंभिक जीवन की जानकारी प्राप्त होती है।

उज्जैन. हर साल 25 दिसंबर को पूरी दुनिया में क्रिसमस का त्योहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। ईसाई धर्म के अनुसार, इसी दिन प्रभु यीशु (ईसा मसीह) का जन्म हुआ था। क्रिसमस के अवसर पर हम आपको प्रभु यीशु के जीवन के बारे में बता रहे हैं-

कुंवारी लड़की के गर्भ से हुआ था यीशु का जन्म
ईसाई धर्म के अनुसार प्रभु यीशु का जन्म बेतलेहम (जोर्डन) में कुँवारी मरियम (वर्जिन मरियम) के गर्भ से हुआ था। उनके पिता का नाम युसुफ था, जो पेशे से बढ़ई थे। स्वयं ईसा मसीह ने भी 30 वर्ष की आयु तक अपना पारिवारिक बढ़ई का व्यवसाय किया। पूरा समाज उनकी ईमानदारी और सद्व्यवहार, सभ्यता से प्रभावित था। सभी उन पर भरोसा करते थे।

विद्वान यूहन्ना से दीक्षा ली थी यीशु ने
यहूदी विद्वान यूहन्ना से भेंट होना यीशु के जीवन की महत्वपूर्ण घटना थी। यूहन्ना जोर्डन नदी के तट पर रहते थे। यीशु ने सर्वप्रथम जोर्डन नदी का जल ग्रहण किया और फिर यूहन्ना से दीक्षा ली। यही दीक्षा के पश्चात ही उनका आध्यात्मिक जीवन शुरू हुआ। अपने सुधारवादी एवं क्रांतिकारी विचारों के कारण यूहन्ना के कैद हो जाने के बाद बहुत समय तक ईसा मृत सागर और जोर्डन नदी के आस-पास के क्षेत्रों में उपदेश देते रहे।

यीशु के शिष्य ने ही किया था विश्वासघात
एक बार यीशु ने अपने शिष्यों से कहा वह समय आ गया है जब एक विश्वासघाती मुझे शत्रुओं के हाथों सौंप देगा। इतना कहना था कि यीशु का एक शिष्य उनकी गिरफ्तारी के लिए सशस्त्र सिपाहियों के साथ आता दिखाई दिया। न्यायालय में उन पर कई झूठे दोष लगाए गए। यहां तक की उन पर ईश्वर की निंदा करने का आरोप लगाकर उन्हें प्राणदंड देने के लिए जोर दिया गया।

मृत्यु के तीन दिन बाद पुनर्जीवित हो गए थे यीशु
न्यायालय के बाहर शत्रुओं ने लोगों की भीड़ एकत्रित की और उनसे कहा कि वे पुकार-पुकार कर यीशु को प्राणदंड देने की मांग करें। ठीक ऐसा ही हुआ। अंतत: उन्हें सूली पर लटका कर कीलों से ठोक दिया गया। मृत्यु के तीसरे दिन एक दैवीय चमत्कार हुआ और यीशु पुन: जीवित हो उठे। मृत्यु के उपरांत पुन: जीवित हो जाना उनकी दिव्य शक्तियों एवं क्षमताओं का प्रतीक था।