सार
गीता के मुताबिक संसार की समस्या आसक्ति, दुःख और भ्रम है। जब कोई व्यक्ति खुद से खुश नहीं होता है, तब ही वो बाहर से मदद लेता है।
अगर हम गीता के शब्दों के अनुसार चलें, तो पहले बीस छंद युद्ध के मैदान और कमांडरों के बारे में बताते हैं और आखिर में भीष्म, अर्जुन और कृष्ण के साथ युद्ध शुरू करने के लिए अपने शंख फुंकते हैं। 21 से 25 तक के श्लोकों में, अर्जुन ने कृष्ण से अपने रथ को सेना के बीच में रखने के लिए कहा ताकि वह सेना की निगरानी कर सके। कृष्ण अपना रथ चलाते हैं और इसे भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने रखते हैं और अर्जुन से अपनी सेना की निगरानी करने के लिए कहते हैं।
इसी समय अर्जुन युद्ध का कारण भूल जाते हैं और अपने सामने सिर्फ अपने रिश्तेदारों को पाकर विचलित हो जाते हैं। वह अपने धर्म को भूल जाते हैं, जिसका उनके रिश्तेदारों ने उल्लंघन किया है। इस समय अर्जुन को लगाव, भ्रम और शोक महसूस होता है। वह अपनी संज्ञानात्मक शक्ति को खो देते हैं। यहां तक कि वह अपने भ्रम को सही ठहराने के लिए धर्मग्रंथों का उदाहरण दते हैं। इस अध्याय के अंत तक अर्जुन समस्या सुलझा पाने में असमर्थ रहते हैं। एक तरफ वो युद्ध रोकना चाहते हैं, लेकिन आश्वस्त नहीं है, दूसरी ओर वह कृष्ण से भी मदद नहीं लेना चाहते।
इस प्रकार, गीता के पहले अध्याय का संदेश यह है कि इस दुनिया में दुःख और तकलीफें हैं क्योंकि इंसान संघर्ष करने में असमर्थ है। अगर हम संघर्ष करें तो हम अपनी व्यक्तिगत, पेशेवर और आध्यात्मिक यात्रा में प्रगति कर सकते हैं।
पसंदीदा श्लोक
एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन |
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतो: किं नु महीकृते || - श्लोक 35
हे कृष्ण (मधुसूदन)! यदि वे तीनों लोकों में मुझे मारना चाहते हैं, तो भी मैं उन्हें मारने का इरादा नहीं करता! इसलिए उन्हें पृथ्वी या विश्व पर मारने का सवाल ही नहीं उठता। उठता है क्या?
अगर हम गहराई में जाएं, तो संघर्ष तीन प्रकार के हो सकते हैं: शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक। शारीरिक संघर्ष हर जगह मौजूद हैं। जानवर अपने क्षेत्रों की रक्षा के लिए लड़ते हैं। निर्जीव वस्तुएं भी आपस में टकराती हैं। हम इंसान भी दूसरों से झगड़ा करते हैं और लड़ते हैं। यहां तक कि हमारे दिमाग में हमेशा संघर्ष होते हैं। यह तर्कसंगतता और अहंकार के बीच है। अर्जुन योद्धा थे, जो बुराई के खिलाफ लड़ने के लिए युद्ध के मैदान में ले गए, लेकिन जिस क्षण उन्होंने अपने परिवार और शिक्षक को देखा; युद्ध को भूल गए।
हमारी मानसिक उलझनों से हम बच नहीं सकते। वे हमेशा और हमेशा के लिए मौजूद रहते हैं: कोई नई बात नहीं। इस प्रकार जब कृष्ण अर्जुन को दोनों सेनाओं के बीच ले गए, तो पहचान का प्रश्न आया। अर्जुन ने स्वयं से प्रश्न किया कि उन्हें किस ओर होना चाहिए। इस प्रकार मानसिक संघर्ष आध्यात्मिक में विलीन हो गया। अर्जुन तर्क, ईश्वर और युक्तिकरण का उपयोग करके इन संघर्षों को सही ठहराने की कोशिश करते हैं, हम सब कुछ जीवन के कठिन सत्य से बचने के लिए करते हैं। हम वास्तव में कभी नहीं जानते हैं कि हम कौन हैं और इस तरह हमेशा इस भ्रम में रहते हैं कि आखिर हमें किस और जाना है?
जब तक हम नहीं जानते कि हम कौन हैं, हम कभी यह तय नहीं कर सकते कि ईश्वर क्या है या ईश्वर के साथ हमारा क्या संबंध है। यदि हम इससे अनजान रहते हैं, तो हम अपने किसी भी संघर्ष को हल करने में सक्षम नहीं होंगे, यह शारीरिक, भावनात्मक या आध्यात्मिक हो सकता है। यह भगवद गीता के पहले अध्याय का केंद्रीय विषय है।
कौन हैं अभिनव खरे
अभिनव खरे एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ हैं, वह डेली शो 'डीप डाइव विथ अभिनव खरे' के होस्ट भी हैं। इस शो में वह अपने दर्शकों से सीधे रूबरू होते हैं। वह किताबें पढ़ने के शौकीन हैं। उनके पास किताबों और गैजेट्स का एक बड़ा कलेक्शन है। बहुत कम उम्र में दुनिया भर के सौ से भी ज्यादा शहरों की यात्रा कर चुके अभिनव टेक्नोलॉजी की गहरी समझ रखते है। वह टेक इंटरप्रेन्योर हैं लेकिन प्राचीन भारत की नीतियों, टेक्नोलॉजी, अर्थव्यवस्था और फिलॉसफी जैसे विषयों में चर्चा और शोध को लेकर उत्साहित रहते हैं। उन्हें प्राचीन भारत और उसकी नीतियों पर चर्चा करना पसंद है इसलिए वह एशियानेट पर भगवद् गीता के उपदेशों को लेकर एक सक्सेजफुल डेली शो कर चुके हैं।
अंग्रेजी, हिंदी, बांग्ला, कन्नड़ और तेलुगू भाषाओं में प्रासारित एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ अभिनव ने अपनी पढ़ाई विदेश में की हैं। उन्होंने स्विटजरलैंड के शहर ज्यूरिख सिटी की यूनिवर्सिटी ETH से मास्टर ऑफ साइंस में इंजीनियरिंग की है। इसके अलावा लंदन बिजनेस स्कूल से फाइनेंस में एमबीए (MBA)भी किया है।