सार

पिछले दिनों गुजरात के द्वारकाधीश मंदिर के ध्वज पर बिजली गिरने का वीडियो बहुत तेजी से वायरल हुआ। लोगों ने इसे भगवान का चमत्कार माना कि इतनी भीषण बिजली गिरने के बाद भी मंदिर को कुछ नुकसान नहीं पहुंचा और जन-धन की हानि भी नहीं हुई।

उज्जैन. इस घटना में सिर्फ मंदिर का ध्वज ही क्षतिग्रस्त हुआ। द्वारकाधीश मंदिर के ध्वज से जुड़ी भी कई रोचक परंपराएं हैं, जिनके बारे में लोग कम ही जानते हैं। आज हम आपको इससे जुड़ी खास बाते बता रहे हैं, जो इस प्रकार है…

5 बार फहराया जाता है ध्वज
आमतौर पर मंदिरों में साल में एक बार ही ध्वज बदला जाता है, लेकिन गुजरात के जिस द्वारकाधीश मंदिर में बिजली गिरी वहां दिन में 5 बार ध्वज फहराया जाता है। इसका समय भी निश्चित है। खास बात ये भी है कि इस ध्वज को श्रद्धालु स्पॉन्सर करते हैं यानी भक्त ध्वज फहराने के लिए एडवांस बुकिंग करते हैं।

अबोटी ब्राह्मण चढ़ाते हैं ध्वज
द्वारकाधीश मंदिर की मंगला आरती सुबह 7.30 बजे, श्रृंगार सुबह 10.30 बजे, इसके बाद सुबह 11.30 बजे, फिर संध्या आरती 7.45 बजे और शयन आरती 8.30 बजे होती है। इसी दौरान ध्वज चढ़ाया जाता है। मंदिर की पूजा आरती गुगली ब्राह्मण करवाते हैं। पूजा के बाद ध्वज द्वारका के अबोटी ब्राह्मण चढ़ाते हैं।

ऐसे बदला जाता है ध्वज
मंदिर में ध्वज चढ़ाने के लिए भक्त पहले से ही बुकिंग करवाते हैं। जिस परिवार को ये मौका मिलता है वो नाचते गाते हुए आते हैं। उनके हाथ में ध्वज होता है। वे इसे भगवान को समर्पित करते हैं। यहां से अबोटी ब्राह्मण इसे लेकर ऊपर जाते हैं और ध्वज बदल देते हैं।

52 गज का ध्वज ही क्यों?
द्वारकाधीश मंदिर का ध्वज पूरे 52 गज का होता है। इसके पीछे के कई मिथक हैं। एक मिथक के अनुसार 12 राशि, 27 नक्षत्र, 10 दिशाएं, सूर्य, चंद्र और श्री द्वारकाधीश मिलकर 52 होते हैं। एक और मान्यता है कि द्वारका में एक वक्त 52 द्वार थे। ये उसी का प्रतीक है। मंदिर के इस ध्वज के एक खास दर्जी ही सिलता है। जब ध्वज बदलने की प्रक्रिया होती है उस तरफ देखने की मनाही होती है। इस ध्वज पर सूर्य और चंद्रमा के प्रतीक होते हैं। मान्यता है कि जब तक सूर्य और चंद्रमा रहेंगे तब तक द्वारकाधीश का नाम रहेगा।