सार

फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को गोविंद द्वादशी कहा जाता है। इस तिथि पर भगवान गोविंद की पूजा और व्रत करने से कष्ट एवं रोगों का नाश होता है साथ ही अतिरात्र याग नामक यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इस बार ये तिथि 25 मार्च, गुरुवार को है।

उज्जैन. गोविंद द्वादशी का पूजन एवं उपवास नियम धारण करने से व्यक्ति को सुख की प्राप्ति होती है। इस व्रत की विधि इस प्रकार है…

- गोविंद द्वादशी तिथि की सुबह स्नान आदि करने के बाद पूजा का संकल्प लें। इसके बाद भगवान श्री विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें।
- इसके बाद भगवान की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाएं। तत्पश्चात प्रतिमा को पोंछकर सुन्दर वस्त्र पहनाएं।
- चंदन, चावल, तुलसी दल व पुष्प आदि पूजन सामग्री श्री हरी बोलते हुए भगवान विष्णु को अर्पित करें।
- भगवान श्री विष्णु को दीप, गंध अर्पित करें और धूप-दीप दिखाएं। आरती करने के पश्चात भगवान को भोग लगाना चाहिए।
- भगवान के भोग को प्रसाद रूप में को सभी में बांटना चाहिए। पूरा दिन उपवास रखने के बाद रात में कीर्तन करें।
- अगली सुबह यानी त्रयोदशी तिथि पर अपने सामर्थ्य अनुसार ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और दान-दक्षिणा इत्यादि भेंट करें। इसके बाद स्वयं भोजन करें।
- जो पूरे विधि-विधान से गोविंद द्वादशी का व्रत करता है वह बैकुंठ को पाता है। इस व्रत की महिमा से व्रती के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं

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