सार
Geeta Jayanti 2022: हिंदू धर्म में श्रीमद्भगवद गीता को बहुत ही पवित्र ग्रंथ माना गया है, क्योंकि ये एक मात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसे स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है। इसलिए हर साल इसकी जयंती अगहन शुक्ल एकादशी पर मनाई जाती है। इस बार ये तिथि 3 दिसंबर, शनिवार को है।
उज्जैन. भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को निमित्त बनाकर पूरी मानव जाति के लिए गीता का उपदेश दिया था। आज सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी गीता को लाइफ मैनेजमेंट के रूप में पढ़ाया जा रहा है। गीता में हमारे लाइफ की हर परेशानी का समाधान छिपा है, जरूरत है तो बस उसे समझने की। वास्तव में यह उपदेश भगवान श्रीकृष्ण ने कलयुग के मापदंड को ध्यान में रखते हुए ही दिया था। इस बार गीता जयंती (Geeta Jayanti 2022) का पर्व 3 दिसंबर, शनिवार को है। इस मौके पर हम आपको गीता के कुछ चुनिंदा श्लोकों के बारे में बता रहे हैं जिनमें जीवन प्रबंधन के कई सूत्र छिपे हैं…
श्लोक 1
तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।
अर्थ- मनुष्यों को चाहिए कि वह संपूर्ण इंद्रियों को वश में करके समाहितचित्त हुआ मेरे परायण स्थित होवे, क्योंकि जिस पुरुष की इंद्रियां वश में होती हैं, उसकी ही बुद्धि स्थिर होती है।
मैनेजमेंट सूत्र
इस श्लोक में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने सांसारिक सुखों को छोड़कर अपनी बुद्धि मुझमें स्थित रखता है, वही जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। यानी जिसकी बुद्धि स्थिर होगा और वह अपने लक्ष्य को पाने के लिए सदैव प्रयास करता रहेगा, वही अंत में जाकर सफल होगा।
श्लोक 2
योगस्थ: कुरु कर्माणि संग त्यक्तवा धनंजय।
सिद्धय-सिद्धयो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।
अर्थ- हे धनंजय (अर्जुन)। कर्म न करने का आग्रह त्यागकर, यश-अपयश के विषय में समबुद्धि होकर योगयुक्त होकर, कर्म कर, (क्योंकि) समत्व को ही योग कहते हैं।
मैनेजमेंट सूत्र
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं अपना कर्म करते समय कभी भी लाभ-हानि या मान-अपमान का ध्यान नहीं करना चाहिए। कोशिश सिर्फ इतनी होनी चाहिए को हम जो भी काम करें, पूरी ईमानदारी से करें। फल चाहे जो भी हो, लेकिन हमें संतुष्टि मिलेगी। मन में संतुष्टि होगी तो परमात्मा से हमारा योग आसानी से होगा। वर्तमान समय पर पहले लोग फायदे-नुकसान के बारे में सोचते हैं, इसलिए उनके मन में संतुष्टि का भाव नहीं आ पाता।
श्लोक 3
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।
न चाभावयत: शांतिरशांतस्य कुत: सुखम्।।
अर्थ- योगरहित पुरुष में निश्चय करने की बुद्धि नहीं होती और उसके मन में भावना भी नहीं होती। ऐसे भावनारहित पुरुष को शांति नहीं मिलती और जिसे शांति नहीं, उसे सुख कहां से मिलेगा।
मैनेजमेंट सूत्र
हर इंसान सुख की इच्छा लिए इधर-उधर भटकता रहता है, लेकिन वो नहीं जानता कि जिस तरह कस्तूरी हिरन की नाभि में होती है उसी तरह सुख तो उसके मन के भीतर है। लेकिन उसे पाने के लिए हमें अपनी बुरी भावनाओं पर नियंत्रण रखना होगा। जिससे मन में शांति का भाव उत्पन्न होगा और शांति से ही सुख प्राप्त होगा।
श्लोक 4
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
कार्यते ह्यश: कर्म सर्व प्रकृतिजैर्गुणै:।।
अर्थ- कोई भी मनुष्य क्षण भर भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता। सभी प्राणी प्रकृति के अधीन हैं और प्रकृति अपने अनुसार हर प्राणी से कर्म करवाती है और उसके परिणाम भी देती है।
मैनेजमेंट सूत्र
कर्म ही जीवन का सार है अगर कोई व्यक्ति ये सोचकर कि कर्म करने से अच्छे-बुरे फल प्राप्त होंगे इसलिए कर्म करना ही छोड़ दे तो उसकी मुर्खता है। ऐसे लोग कुछ न करते हुए भी कर्म ही करते हैं और इसका परिणाम भी प्राप्त करते हैं। प्रकृति हमारे न चाहते हुए भी हमने वो सब करवा ही लेती है जो वह चाहती है। इसलिए कभी भी कर्म का साथ छोड़ना नहीं चाहिए।
श्लोक 5
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतु र्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि ।।
अर्थ- भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन। कर्म करने में तेरा अधिकार है। उसके फलों के विषय में मत सोच। इसलिए तू कर्मों के फल का हेतु मत हो और कर्म न करने के विषय में भी तू आग्रह न कर।
मैनेजमेंट सूत्र
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि कर्म करते समय उससे फल पाने की इच्छा मन में नही होनी चाहिए। क्योंकि यही इच्छा उसका सफलता में बाधा उत्पन्न करती है। निष्काम काम यानी बिना फल की इच्छा से किया गया काम ही श्रेष्ठ फल प्रदान करता है। उस कर्म का फल हमें कब मिलेगा, कितना मिलेगा, ये सब बातें भगवान पर ही छोड़ देनी चाहिए।
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