सार
धर्म ग्रंथों के अनुसार, पौष महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। इसे पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi 2022) कहते हैं। इस साल ये एकादशी 13 जनवरी, गुरुवार को है। मान्यता है कि इस दिन व्रत से भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करने पर निस्संतान दंपतियों को संतान की प्राप्ति होती है।
उज्जैन. शास्त्रों में पुत्रदा एकादशी व्रत (Putrada Ekadashi 2022) की महिमा बताई गई है, जिससे योग्य संतान की कामना पूर्ण होती है। सिर्फ संतानहीन ही नहीं अपितु इस व्रत को करने से संतान वाले साधकों की संतान को हर परेशानी से मुक्ति भी मिलती है और घर में धन-धान्य की किसी प्रकार की कमी नहीं रहती है व सदैव सुख-शांति रहती है।
व्रत पूजा सामग्री
श्री विष्णु जी व बाल कृष्ण का मूर्ति या चित्र, फूल, फल, मिठाई, अक्षत, तुलसी दल, नारियल, सुपारी, लौंग, चंदन, धूप, दीप, घी और पंचामृत
एकादशी व्रत-पूजा विधि
इस पूजा में भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की भी पूजा भी करनी चाहिए, ताकि बाल कृष्ण सी सुयोग्य संतान की प्राप्ति हो। सुबह सूर्योदय के साथ स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा में व्रत का संकल्प लें और बाल कृष्ण के साथ भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करें। पूजा में भगवान को पीला फल, पीले पुष्प, पंचामृत, तुलसी आदि अर्पित करें। दंपति एक साथ व्रत का संकल्प लें और व्रत का पूजन करना चाहिए।
ये है पुत्रदा एकादशी की कथा
- पहले किसी समय में भद्रावतीपुरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम चम्पा था। उनके यहां कोई संतान नहीं थी, इसलिए दोनों पति-पत्नी सदा चिन्ता और शोक में रहते थे।
- इसी शोक में एक दिन राजा राजा सुकेतुमान वन में चले गये। जब राजा को प्यास लगी तो वे एक सरोवर के निकट पहुंचे। वहां बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे थे। राजा ने उन सभी मुनियों को वंदना की।
- प्रसन्न होकर मुनियों ने राजा से वरदान मांगने को कहा। मुनि बोले कि पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकदाशी कहते हैं। उस दिन व्रत रखने से योग्य संतान की प्राप्ति होती है। तुम भी वही व्रत करो।
- ऋषियों के कहने पर राजा ने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। कुछ ही दिनों बाद रानी चम्पा ने गर्भधारण किया। उचित समय आने पर रानी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट किया तथा न्यायपूर्वक शासन किया।
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