सार

Guru Nanak Dev Death Anniversary 2022: नानकदेवजी सिक्ख धर्म के पहले गुरु थे।  22 सितंबर, गुरुवार को इनकी पुण्य तिथि है। जहां-जहां गुरुनानक देव रहे, वहां आज कई प्रसिद्ध गुरुद्वारे हैं। ऐसा ही एक गुरुद्वारा पाकिस्तान के नारोवाल में भी है। 
 

उज्जैन. सिक्खों के पहले गुरु नानकदेव की शिक्षाएं मानव समाज को सही रास्ता दिखाती हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की भलाई में लगाया और समाज में फैली बुराइयों को दूर करने के लिए भी कई प्रयास किए। इस बार 22 सितंबर, गुरुवार को गुरु नानकदेव की पुण्यतिथि (Guru Nanak Dev Death Anniversary 2022) है। इस मौके पर हम आपको एक ऐसे गुरुद्वारे के बारे में बता रहे हैं जो पाकिस्तान में है। यहीं गुरु नानकदेव की समाधि भी है।

18 साल यहां रहे गुरु नानकदेव
पाकिस्तान की सीमा से लगभग 5 किलोमीटर दूर नारोवाल नाम के स्थान पर बना है करतारपुर साहिब गुरुद्वारा (Kartarpur Sahib Pakistan)। गुरुनानकदेव जी ने अपने जीवन के लगभग 18 वर्ष यहीं बिताए और इसी स्थान पर उनकी मृत्यु भी हुई। इस वजह से सिक्खों के लिए ये स्थान सबसे बड़े तीर्थ स्थल के रूप में लोकप्रिय है। गुरु नानकदेवजी ने लंगर की शुरुआत भी यहां से की थी। तत्कालीन गवर्नर दुनी चंद की मुलाकात गुरु नानकदेवजी से होने पर उन्होंने 100 एकड़ जमीन गुरु साहिब के लिए दी थी। 1522 में यहां एक छोटी झोपड़ीनुमा स्थल का निर्माण कराया गया। 

पटियाला के राजा ने करवाया था निर्माण
करतारपुर गुरुद्वारा साहिब का भव्य निर्माण पटियाला के महाराजा सरदार भूपिंदर सिंह ने करवाया था। 1995 में पाकिस्तान सरकार ने इसकी मरम्मत कराई थी और 2004 में इसे पूरी तरह से संवारा गया। आज भी यहां पूरे दुनिया से गुरु नानकदेव के अनुयायी शिश झुकाने जाते हैं। हाल ही में पाकिस्थान और भारत सरकार ने करतारपुर साहिब कॉरिडोर का निर्माण करवाया है जिससे वहां जाने वाले लोगों को काफी सुविधा मिल रही है। खास बात ये है कि इस मार्ग से जाने पर वीजा की जरूरत भी नहीं होती। 

कभी दूरबीन से करते थे दर्शन
जब करतारपुर साहिब कॉरिडोर का निर्माण नहीं हुआ था उस समय लोगों को यहां दर्शन करने के लिए वीजा की जरूरत पड़ती थी। जो लोग पाकिस्तान नहीं जा पाते थे, वे भारतीय सीमा में डेरा बाबा नानक स्थित गुरुद्वारा शहीद बाबा सिद्ध सैन रंधावा में दूरबीन की मदद से करतारपुर साहिब का दर्शन करते थे। भारत और पाकिस्तान के बॉर्डर के नजदीक बने इस गुरुद्वारे के आसपास काफी बड़ी घास हो जाती थी, जिसे पाकिस्तान अथॉरिटी छंटवाती थी ताकि भारतीय सीमा से यहां के दर्शन हो सकें।


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