सार

29 अप्रैल, बुध‌वार से केदारनाथ मंदिर के कपाट खुल चुके हैं। ये 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ये मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। 

उज्जैन. हर साल गर्मी के दिनों में ये मंदिर भक्तों के लिए खोला जाता है। अन्य ऋतुओं में यहां का वातावरण प्रतिकूल रहता है, इस वजह से मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। उज्जैन के शिवपुराण कथाकार और ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार जानिए केदारनाथ धाम से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं...

नर-नारायण की भक्ति से प्रसन्न हुए शिवजी
केदरनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। शिवपुराण की कोटीरुद्र संहिता में बताया गया है कि प्राचीन समय में बदरीवन में विष्णुजी के अवतार नर-नारायण इस क्षेत्र में पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा करते थे। नर-नारायण की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी प्रकट हुए। शिवजी ने नर-नारायण से वरदान मांगने को कहा, तब सृष्टि के कल्याण के लिए नर-नारायण ने वर मांगा कि शिवजी हमेशा इसी क्षेत्र में रहें। शिवजी ने कहा कि अब से वे यहीं रहेंगे और ये क्षेत्र केदार क्षेत्र के नाम से जाना जाएगा।

केदारनाथ के साथ ही नर-नारायण के दर्शन
शिवजी ने नर-नारायण को वरदान देते हुए कहा था कि जो भी भक्त केदारनाथ के साथ ही नर-नारायण के भी दर्शन करेगा, वह सभी पापों से मुक्त होगा और उसे अक्षय पुण्य मिलेगा। शिवजी ज्योति स्वरूप में यहां स्थित शिवलिंग में समा गए।

केदारनाथ शिवलिंग माना जाता है स्वयंभू
हिमालय में स्थित केदारनाथ अधिकांश समय प्रतिकूल वातावरण की वजह से बंद रहता है। हर साल अप्रैल से नवंबर के बीच दर्शन के लिए खोला जाता है। मान्यता है कि ये स्वयंभू शिवलिंग है। स्वयंभू शिवलिंग का अर्थ है कि यह स्वयं प्रकट हुआ है। केदारनाथ मंदिर का निर्माण पाण्डव वंश के राजा जनमेजय द्वारा करवाया गया था और आदि गुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।

कैसे पहुंच सकते हैं केदारनाथ?

  • केदारनाथ जाने के लिए कोटद्वार जो कि केदारनाथ से 260 किलोमीटर तथा ऋर्षिकेश जो कि केदारनाथ से 229 किलोमीटर दूर है तक रेल द्वारा आया जा सकता है।
  • सड़क मार्ग द्वारा गौरीकुण्ड तक जाया जा सकता है जो कि केदारनाथ मंदिर से 14 किलोमीटर पहले है। यहां से पैदल मार्ग या खच्चर तथा पालकी से भी केदारनाथ जाया जा सकता है।