सार
शिवपुराण के अनुसार, त्रेतायुग में भगवान श्रीराम की सहायता करने और दुष्टों का नाश करने के लिए भगवान शिव ने वानर जाति में हनुमान के रूप में अवतार लिया था।
उज्जैन. हनुमान को भगवान शिव का श्रेष्ठ अवतार कहा जाता है। जब भी श्रीराम-लक्ष्मण पर कोई संकट आया, हनुमानजी ने उसे अपनी बुद्धि व पराक्रम से दूर कर दिया। वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड में स्वयं भगवान श्रीराम ने अगस्त्य मुनि से कहा है कि हनुमान के पराक्रम से ही उन्होंने रावण पर विजय प्राप्त की है। हनुमान जयंती (8 अप्रैल, बुधवार) के अवसर पर हम आपको हनुमानजी द्वारा किए गए कुछ ऐसे ही कामों के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें करना किसी और के वश में नहीं था-
राक्षसों का वध
युद्ध में हनुमानजी ने अनेक पराक्रमी राक्षसों का वध किया, इनमें धूम्राक्ष, अकंपन, देवांतक, त्रिशिरा, निकुंभ आदि प्रमुख थे। हनुमानजी और रावण में भी भयंकर युद्ध हुआ था। रामायण के अनुसार, हनुमानजी का थप्पड़ खाकर रावण उसी तरह कांप उठा था, जैसे भूकंप आने पर पर्वत हिलने लगते हैं। हनुमानजी के इस पराक्रम को देखकर वहां उपस्थित सभी वानरों में हर्ष छा गया था।
समुद्र लांघना
माता सीता की खोज करते समय जब हनुमान, अंगद, जामवंत आदि वीर समुद्र तट पर पहुंचे तो 100 योजन विशाल समुद्र को देखकर उनका उत्साह कम हो गया। तब जामवंत ने हनुमानजी को उनके बल व पराक्रम का स्मरण करवाया और हनुमानजी ने 100 योजन विशाल समुद्र को एक छलांग में ही पार कर लिया।
माता सीता की खोज
हनुमानजी ने लंका में माता सीता को बहुत खोजा, लेकिन वह कहीं भी दिखाई नहीं दी। फिर भी हनुमानजी के उत्साह में कोई कमी नहीं आई। इसके बाद भी वे लंका के अन्य स्थानों पर माता सीता की खोज करने लगे। अशोक वाटिका में जब हनुमानजी ने माता सीता को देखा तो वे अति प्रसन्न हुए। इस प्रकार हनुमानजी ने यह कठिन काम भी बहुत ही सहजता से कर दिया।
अक्षयकुमार का वध व लंका दहन
माता सीता की खोज के बाद हनुमानजी ने अशोक वाटिका को तहस-नहस कर दिया। तब रावण ने अपने पराक्रमी पुत्र अक्षयकुमार को भेजा, हनुमानजी ने उसको भी मार दिया। हनुमानजी ने अपना पराक्रम दिखाते हुए लंका में आग लगा दी। पराक्रमी राक्षसों से भरी लंका में जाकर माता सीता को खोज करना व राक्षसों का वध कर लंका को जलाने का साहस हनुमानजी ने बड़ी ही सहजता से कर दिया।
विभीषण को अपने पक्ष में करना
जब विभीषण रावण को छोड़कर श्रीराम की शरण में आए तो सुग्रीव, जामवंत आदि ने कहा कि ये रावण का भाई है। इसलिए इस पर भरोसा नहीं करना चाहिए। उस स्थिति में हनुमानजी ने ही विभीषण का समर्थन किया था। अंत में, विभीषण के परामर्श से ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।
राम-लक्ष्मण के लिए पहाड़ लेकर आना
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, युद्ध के दौरान रावण के पुत्र इंद्रजीत ने ब्रह्मास्त्र चलाकर भगवान श्रीराम व लक्ष्मण को बेहोश कर दिया। तब ऋक्षराज जामवंत ने हनुमानजी को औषधियों का पर्वत लाने को कहा। अपनी बुद्धि और पराक्रम के बल पर हनुमान औषधियों का वह पर्वत समय रहते उठा आए। उस पर्वत की औषधियों की सुगंध से ही राम-लक्ष्मण व करोड़ों घायल वानर पुन: स्वस्थ हो गए।