सार

खड़ाऊ यानि लकड़ी की चप्पल पहनने का चलन हमारे देश में वैदिक काल से चला आ रहा है। कुछ साधु-संत तो आज भी खड़ाऊ पहनते हैं। धार्मिक ग्रंथों में लकड़ी की चप्पलों का उल्लेख किया गया है।

उज्जैन. यजुर्वेद में बताया गया है कि खड़ाऊ पहनने से कई बीमारियों से हमारी रक्षा होती है। आगे जानिए इस परंपरा से जुड़ी खास बातें…

1. गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी हर एक चीज को अपनी ओर खींचती है। ऐसे में धरती के सीधे संपर्क में आने पर हमारे शरीर से निकलने वाली विद्युत तरंगें जमीन में चली जाती हैं।
2. जब हमारे ऋषि-मुनियों ने इस तथ्य पर खोज की तो पता चला कि अन्य सभी प्रकार की चीजें विद्युत की सुचालक है यानी इनसे बनी चप्पल आदि चीजें भी नहीं पहनी जा सकती।
3. लकड़ी विद्युत की कुचालक है, इसे पहनने से हमारे शरीर की विद्युत तरंगे सीधे जमीन में नहीं जा पाती। इन तरंगों को बचाने के लिए खड़ाऊ पहनने की व्यवस्था की गई।
4. खड़ाऊ पहनने से तलवे की मांसपेशियां मजबूत बनती हैं और एक्यूप्रेशर के कारण शरीर कई रोगों से बचा रहता है।
5. खड़ाऊ पहनने से शरीर का संतुलन सही रहता है जिसकी वजह से रीढ़ की हड्डी पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 
6. पैरों में लकड़ी की पादुका पहनने से शरीर में रक्त का प्रवाह सही रहता है। साथ ही शरीर में सकारात्मक ऊर्जा विकसित होती रहती है।

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