सार
इस बार 13 फरवरी, रविवार को एक साथ 3 पर्वों का योग बन रहा है। ज्योतिषियों की मानें तो ऐसा बहुत ही कम होता है जब एक ही दिन में 3 पर्व मनाए जाते हैं। 13 फरवरी, रविवार को उदयकालीन द्वादशी तिथि में भीष्म द्वादशी (Bhishma Dwadashi 2022) पर्व और तिल द्वादशी (Til Dwadashi 2022) व्रत किया जाएगा।
उज्जैन. रविवार को सूर्योदय के साथ कुंभ संक्रांति (Kumbh Sankranti 2022) पर्व मनाया जाएगा, जिसका पुण्यकाल सूर्योदय से ही शुरू हो जाएगा। जो कि दोपहर तकरीबन 12.20 तक रहेगा। पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र के अनुसार, सनातन परंपरा में इन तीनों ही पर्वों का विशेष महत्व है। क्योंकि सूर्य संक्रांति पर्व सूर्य पूजा और भीष्म द्वादशी पितरों की शांति से जुड़ा है। वहीं, तिल तिथि का संबंध भगवान विष्णु की पूजा से है।
कुंभ संक्रांति क्यों है खास?
सूर्य उपासना को समर्पित कुंभ संक्रांति माघ मास में आती है। इसे सूर्य संक्रांति भी कहा जाता है। रविवार को इस पर्व का पुण्यकाल सूर्योदय से शुरू होकर दोपहर तकरीबन 12.20 तक रहेगा। चूंकि ये सूर्य उपासना का पर्व है, लिहाजा उदयकालीन समय ही महत्वपूर्ण रहेगा। इसलिए सूर्योदय से पहले ही नहाकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। ऐसा न कर पाए तो दिन के पहले प्रहर तक यानी सुबह 10.10 बजे से पहले नदी-तालाब में स्नान कर भगवान सूर्य को अर्घ्य देना उत्तम रहेगा।
क्यों खास है भीष्म द्वादशी?
भीष्म द्वादशी पर्व माघ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को किया जाता है। ये व्रत भीष्म पितामह के निमित्त किया जाता है। इस दिन तर्पण, श्राद्ध और अन्य धार्मिक कर्मकाण्ड द्वादशी तिथि पर भी किए जाते हैं। पितरों की शांति के लिए इस दिन नदी-तालाब या घर में भी तर्पण कर सकते हैं। पितरों के निमित्त इस दिन ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को दान करना श्रेष्ठ रहेगा।
क्यों खास है तिल द्वादशी?
माघ महीने की द्वादशी तिथि को तिल द्वादशी व्रत किया जाता है। इसका जिक्र पद्म, स्कंद और नारद पुराण में किया गया है। माघ महीने की द्वादशी तिथि पर भगवान विष्णु की तिल से पूजा की जाती है और तिल का ही दान किया जाता है। पुराणों के मुताबिक ऐसा करने से अश्वमेध यज्ञ करने जितना पुण्य मिलता है। पुराणों में कहा गया है कि जिस पानी में तिल हो वो माघ महीने में अमृत समान हो जाता है।