सार

जब हम किसी चीज़ से जुड़ जाते हैं, तो उसके छिन जाने पर या दूर जाने पर हमें दुःख होता है. लेकिन यदि हम किसी चीज़ को ख़ुद से अलग कर देखते हैं, तो एक अलग सी आज़ादी महसूस करते हैं और दु:ख हमें छूता तक नहीं है।

उज्जैन.  दु:खी होना और ना होना पूर्णतः हमारी सोच और मानसिकता पर निर्भर करता है। सोच पर नियंत्रण रखकर या उसे सही दिशा देकर हम बहुत से दु:खों और परेशानियों से बच सकते हैं। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है किसी बात का दुख तभी होता है जब उससे हमारा सीधा जुड़ाव हो।

जब जल गया एक आलीशन घर
किसी शहर में एक अमीर आदमी रहता था। उसके पास एक आलीशान मकान था। वह शहर का सबसे ख़ूबसूरत घर माना जाता था। एक बार घर का मालिक किसी काम से कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर चला गया। जब वह वापस लौटा तो उसने देखा कि उसके मकान से धुआं उठ रहा है। करीब जाने पर उसे घर से आग की लपटें उठती हुई दिखाई पड़ी। 
उसका ख़ूबसूरत घर जल रहा था। वहां तमाशबीनों की भीड़ जमा थी, जो उस घर के जलने का तमाशा देख रही थी। अपने घर को जलता हुए देख वह व्यक्ति चिंता में पड़ गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे? कैसे अपने घर को जलने से बचाये? 
उसी समय उसका बड़ा बेटा वहाँ आया और बोला, “पिताजी, घबराइए मत, सब ठीक हो जायेगा।”
पिता बोला, “कैसे न घबराऊँ? मेरा इतना ख़ूबसूरत घर जल रहा है।” 
बेटे ने उत्तर दिया, “पिताजी, एक बात मैंने आपको नहीं बताई। कुछ दिनों पहले मुझे इस घर के लिए एक बहुत बढ़िया खरीददार मिला था। उसने मेरे सामने मकान की कीमत की 3 गुनी रकम का प्रस्ताव रखा। सौदा इतना अच्छा था कि मैं इंकार नहीं कर पाया और मैंने आपको बिना बताये सौदा तय कर लिया।”
ये सुनकर पिता की जान में जान आई। उसने राहत की सांस ली और आराम से यूं खड़ा हो गया, जैसे सब कुछ ठीक हो गया हो। अब वह भी अन्य लोगों की तरह तमाशबीन बनकर उस घर को जलते हुए देखने लगा।
तभी उसका दूसरा बेटा आया और बोला, “पिताजी हमारा घर जल रहा है और आप कुछ करते क्यों नहीं?”
पिता ने कहा “बेटा चिंता की बात नहीं है। तुम्हारे बड़े भाई ने ये घर बहुत अच्छे दाम पर बेच दिया है। अब ये हमारा नहीं रहा, इसलिए अब कोई फ़र्क नहीं पड़ता।” पिता बोला।
“पिताजी भैया ने सौदा तो कर दिया था, लेकिन अब तक सौदा पक्का नहीं हुआ है। अभी हमें पैसे भी नहीं मिले हैं। अब बताइए, इस जलते हुए घर के लिए कौन पैसे देगा?”
यह सुनकर पिता फिर से चिंतित हो गया और सोचने लगा कि कैसे आग की लपटों पर काबू पाया जाए। वह फिर से पास खड़े लोगों से मदद की गुहार लगाने लगा।
तभी उसका तीसरा बेटा आया और बोला, “पिता जी घबराने की कोई बात नहीं है। मैं अभी उस आदमी से मिलकर आ रहा हूँ, जिससे मकान का सौदा हुआ है। उसने कहा है कि वह ये घर जरूर खरीदेगा और उसके पैसे भी देगा।”
पिता फिर से चिंतामुक्त हो गया और घर को जलते हुए देखने लगा।

लाइफ मैनेजमेंट
एक ही परिस्थिति में व्यक्ति का व्यवहार भिन्न-भिन्न हो सकता है और यह व्यवहार उसकी सोच के कारण होता है। किसी भी व्यक्ति को दर्द और तकलीफ तभी होती है जब वो उसकी स्वयं की हो। दूसरों की तकलीफ देखकर लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता। सोच पर नियंत्रण रखकर या उसे सही दिशा देकर हम बहुत से दु:खों और परेशानियों से न सिर्फ बच सकते हैं, बल्कि जीवन में नई ऊँचाइयाँ भी प्राप्त कर सकते हैं।  


 

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