सार

अक्सर लोग दूसरों को स्वयं से कमतर या मूर्ख समझते हैं। उन्हें लगता है संसार में वे ही सबसे ज्ञानी हैं बाकी लोगों में तो समझ ही नहीं है। लेकिन ऐसा होता नहीं है। कुछ लोग अपने ज्ञान का प्रदर्शन नहीं करते और चुपचाप अपने कार्य की प्रगति में लगे रहते हैं।

उज्जैन. जो लोग मूर्ख दिखते हैं, एक दिन जब उनकी काबिलियत सबके सामने आती है तो सभी लोग आश्चर्यचकित रह जाते हैं। जो लोग उन्हें मूर्ख समझते हैं, वे दांतों तले उंगलियां दबा लेते हैं। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है कभी किसी को मूर्ख नहीं समझना चाहिए।

राजा ने पंडितजी के पुत्र को समझा मूर्ख
किसी राज्य में एक पंडितजी रहा करते थे। वे अपनी बुद्धिमत्ता के लिए प्रसिद्ध थे। एक दिन राजा ने पंडितजी को अपने दरबार में आमंत्रित किया। राजा ने उनसे कई विषयों पर बात की। बात खत्म होने के बाद राजा ने पंडितजी से पूछा “ आप इतने बुद्धिमान है, किंतु आपका पुत्र इतना मूर्ख क्यों हैं?” 
राजा की बात सुनकर पंडितजी ने पूछा, “आप ऐसा क्यों कह रहे हैं राजन?” 
“पंडितजी, आपके पुत्र को ये नहीं पता कि सोने और चाँदी में अधिक मूल्यवान क्या है।” राजा बोला। ये सुनकर सारे दरबारी हँसने लगे।
अपने पुत्र का मजाक उड़ता देख पंडितजी क्रोधित हो गए और अपने घर पहुँचें। उन्होंने अपने बेटे से पूछा “ये बताओ कि सोने और चाँदी में अधिक मूल्यवान क्या है?” 
“सोना अधिक मूल्यवान है।” पुत्र ने उत्तर दिया।
पंडितजी ने पूछा, “तुमने इस प्रश्न का सही उत्तर दिया है फिर राजा तुम्हें मूर्ख क्यों कहते हैं? वे कहते हैं कि तुम्हें सोने और चाँदी के मूल्य का ज्ञान नहीं है।”
पंडितजी की बात सुनकर पुत्र सारा माज़रा समझ गया। उसने बताया “पिताश्री। मैं प्रतिदिन सुबह जिस रास्ते से विद्यालय जाता हूँ, उस रास्ते के किनारे राजा अपना दरबार लगाते हैं। वहां ज्ञानी और बुद्धिमान लोग बैठकर विभिन्न विषयों पर चर्चा करते हैं। मुझे वहाँ से जाता हुआ देख राजा अक्सर मुझे बुलाते है और अपने एक हाथ में सोने और एक हाथ में चाँदी का सिक्का रखकर कहते हैं कि इन दोनों में से तुम्हें जो मूल्यवान लगे, वो उठा लो। मैं रोज़ चाँदी का सिक्का उठाता हूँ। यह देख वे लोग मेरा परिहास करते हैं और मुझ पर हँसते हैं। मैं चुपचाप वहाँ से चला जाता हूँ।”
पूरी बात सुनकर पंडितजी ने कहा, “पुत्र, जब तुम्हें पता है कि सोने और चाँदी में से अधिक मूल्यवान सोना है, तो सोने का सिक्का उठाकर ले आया करो। क्यों स्वयं को उनकी दृष्टि में मूर्ख साबित करते हो? तुम्हारे कारण मुझे भी अपमानित होना पड़ता है।”
पुत्र हँसते हुए बोला, “पिताश्री मेरे साथ अंदर आइये, मैं आपको कारण बताता हूँ।”
वह पिता को अंदर के कक्ष में ले गया। वहाँ कोने में एक संदूक रखा हुआ था। उसने वह संदूक खोलकर पंडितजी को दिखाया। पंडितजी आश्चर्यचकित रह गए। उस संदूक में चाँदी के सिक्के भरे हुए थे।
पंडितजी ने पूछा, “पुत्र! ये सब कहाँ से आया?”
पुत्र ने उत्तर दिया, “पिताश्री! राजा के लिए मुझे रोकना और हाथ में सोने और चाँदी का सिक्का लेकर वह प्रश्न पूछना एक खेल बन गया है, अक्सर वे यह खेल मेरे साथ खेला करते हैं और मैं चाँदी का सिक्का लेकर आ जाता हूँ। उन्हीं चाँदी के सिक्कों से यह संदूक भर गया है। जिस दिन मैंने सोने का सिक्का उठा लिया, उस दिन ये खेल बंद हो जायेगा। इसलिए मैं कभी सोने का सिक्का नहीं उठाता।”
पंडितजी को पुत्र की बात समझ तो आ गई किंतु वे पूरी दुनिया को ये बताना चाहते थे कि उनका पुत्र मूर्ख नहीं है। इसलिए उसे लेकर वे राजा के दरबार चले गए। वहाँ पुत्र ने राजा को सारी बात बता दी है कि वो जानते हुए भी चाँदी का सिक्का ही क्यों उठाता है।
पूरी बात जानकर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने सोने के सिक्कों से भरा संदूक मंगवाया और उसे पंडितजी के पुत्र को देते हुए बोला “असली विद्वान तो तुम निकले।”

लाइफ मैनेजमेंट
कभी भी अपने सामर्थ्य का दिखावा मत करो। कर्म करते चले जाओ। जब वक़्त आएगा, तो पूरी दुनिया को पता चल जायेगा कि आप कितने सामर्थ्यवान हैं। उस दिन आप सोने की तरह चमकोगे और पूरी दुनिया आपका सम्मान करेगी। 


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