सार
लोहड़ी (Lohri 2022) का पर्व नई फसल की खुशी में मनाया जाता है। इस समय पंजाब आदि क्षेत्रों में रवी की फसल आती है। इसलिए किसान इसे बहुत ही उत्साह के साथ मनाते हैं। नाचते हैं, गाते हैं और खुशियां मनाते हैं। मुख्यतः पंजाब का पर्व होने से इसके नाम के पीछे कई तर्क दिए जाते हैं।
उज्जैन. ल का अर्थ लकड़ी है, ओह का अर्थ गोहा यानी उपले, और ड़ी का मतलब रेवड़ी। तीनों अर्थों को मिला कर लोहड़ी बना है। संपूर्ण भारत में लोहड़ी का पर्व धार्मिक आस्था, ऋतु परिवर्तन और कृषि उत्पादन से जुड़ा है। लोहड़ी की शाम को सभी लोग एक स्थान पर इकट्ठे होकर आग जलाते हैं और इसके इर्द-गिर्द नाचते-गाते हैं। इस दिन अग्नि देवता को खुश करने के लिए अलाव में गुड़, मक्का, तिल व फूला हुआ चावल जैसी चीजें भी चढ़ाई जाती हैं।
लोहड़ी पर इस विधि से करें पूजा
- 13 जनवरी की शाम 5 बजे से रोहिणी नक्षत्र आरंभ हो जाएगा। इसके बाद लोहड़ी के लिए अग्नि जलाना शुभ रहेगा।
- लोहड़ी पर भगवान श्रीकृष्ण, आदिशक्ति और अग्निदेव की आराधना की जाती है। इस दिन पश्चिम दिशा में आदिशक्ति की प्रतिमा स्थापित करें।
- इसके बाद उनके समक्ष सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इसके बाद उन्हें सिंदूर और बेलपत्र अर्पित करें। भोग में प्रभु को तिल के लड्डू चढ़ाएं।
- इसके बाद सूखा नारियल लेकर उसमें कपूर डालें। अब अग्नि जलाकर उसमें तिल का लड्डू, मक्का और मूंगफली अर्पित करें। फिर अग्नि की 7 या 11 परिक्रमा करें।
लोहड़ी की अग्नि में क्यों डालते हैं तिल?
लोहड़ी पर अग्नि में तिल व अन्य चीजें डाली जाती हैं। आयुर्वेद के अनुसार, जब तिल युक्त आग जलती है तो वातावरण में बहुत सा संक्रमण समाप्त हो जाता है और परिक्रमा करने से शरीर में गति आती है। तिल का प्रयोग हवन व यज्ञ आदि में भी किया जाता है। धार्मिक दृष्टिकोण से भी तिल का विशेष महत्व बताया गया है। इसलिए लोहड़ी पर अग्नि में तिल विशेष रूप से डाला जाता है। गरुड पुराण के अनुसार, तिल भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुआ है, इसलिए इसका उपयोग धार्मिक क्रिया-कलापों में विशेष रूप से किया जाता है।