सार
महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2022) शिव भक्तों का सबसे प्रमुख त्योहार है। इस बार ये पर्व 1 मार्च, मंगलवार को है। इस दिन शिव मंदिरों में भक्तों का तांता लगा रहता है। वैसे तो हमारे देश में भगवान शिव के अनेक प्राचीन मंदिर हैं, लेकिन इन सभी में ज्योतिर्लिंग का महत्व सबसे अधिक है।
उज्जैन. 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में (12 Jyotirlinga) रामेश्वरम (rameshwaram) का स्थान 11वां है। यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु (Tamil Nadu) के रामनाथपुरम (Ramanathapuram) जिले में स्थित है। यह तीर्थ हिंदुओं के चार धामों में से एक है। शिवपुराण (Shivapurana) के अनुसार इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम ने की थी। शिवपुराण के अनुसार जो मनुष्य गंगाजल से इस शिवलिंग का अभिषेक करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस ज्योतिर्लिंग से और भी कई परंपराएं जुड़ी हुई हैं, जो इसे खास बनाती है।
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ये है ज्योतिर्लिंग की कथा
रामायण के अनुसार त्रेता युग में श्रीराम ने धर्म की स्थापना के लिए अवतार लिया था। उस समय रावण की वजह से सृष्टि में अधर्म फैल रहा था। रावण एक ब्राह्मण था। इस वजह से रावण का वध करने पर श्रीराम पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा था। ऋषियों ने श्रीराम को ब्रह्म हत्या के पाप का प्रायश्चित करने के लिए कहा। ऋषियों ने श्रीराम से कहा कि वे शिवलिंग स्थापित करके अभिषेक करें। इसके बाद वहां सीता द्वारा बनाया गया बालू का शिवलिंग स्थापित किया गया और श्रीराम ने उसकी पूजा की। इसी वजह से ज्योतिर्लिंग का नाम रामेश्वरम् पड़ा। यहां की गई पूजा से शिवजी के साथ ही श्रीराम भी प्रसन्न होते हैं।
एक कथा ये भी है कि श्रीराम ने लंका विजय से पहले समुद्र तट पर इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी और पुरोहित के रूप में स्वयं रावण को बुलाया था। रावण द्वारा पूजा करवाने के बाद ही श्रीराम की पूजा संपूर्ण हुई थी।
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भारतीय शिल्पकला का सुंदर उदाहरण है रामेश्वरम मंदिर
रामेश्वरम मंदिर भारतीय निर्माण कला और शिल्पकला का एक सुंदर नमूना है। इसका प्रवेश द्वार चालीस फीट ऊंचा है। जिस स्थान पर यह टापू मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ था, वहां वर्तमान में ढाई मील चौड़ी एक खाड़ी है। शुरू में इस खाड़ी को नावों से पार किया जाता था। आज से लगभग चार सौ वर्ष पहले कृष्णप्पनायकन नाम के एक राजा ने पत्थर का बहुत बड़ा पुल बनवाया। अंग्रेजों के आने के बाद उस पुल की जगह पर रेल का पुल बनाने का विचार हुआ। उस समय तक पुराना पत्थर का पुल लहरों की टक्कर से हिलकर टूट चुका था। एक जर्मन इंजीनियर की मदद से उस टूटे पुल का रेल का एक सुंदर पुल बनवाया गया। वर्तमान में यही पुल रामेश्वरम को भारत से रेल सेवा द्वारा जोड़ता है।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग से जुड़ी खास बातें
1. रामेश्वरम मंदिर में विशालाक्षी जी के गर्भ-गृह के निकट ही नौ ज्योतिर्लिंग हैं, जो लंकापति विभीषण द्वारा स्थापित बताए जाते हैं।
2. रामनाथ के मंदिर में जो ताम्रपट है, उनसे पता चलता है कि 1179 ईस्वी में श्रीलंका के राजा पराक्रम बाहु ने मूल लिंग वाले गर्भगृह का निर्माण करवाया था।
3. पंद्रहवीं शताब्दी में राजा उडैयान सेतुपति और निकटस्थ नागूर निवासी वैश्य ने 1450 में इसका 78 फीट ऊंचा गोपुरम निर्माण करवाया था। बाद में मदुरई के एक देवी-भक्त ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था।
4. सोलहवीं शताब्दी में दक्षिणी भाग के द्वितीय परकोटे की दीवार का निर्माण तिरुमलय सेतुपति ने करवाया था। इनकी व इनके पुत्र की मूर्ति द्वार पर भी विराजमान है।
5. इसी शताब्दी में मदुरई के राजा विश्वनाथ नायक के एक अधीनस्थ राजा उडैयन सेतुपति कट्टत्तेश्वर ने नंदी मण्डप आदि निर्माण करवाए।
6. सत्रहवीं शताब्दी में दलवाय सेतुपति ने पूर्वी गोपुरम आरंभ किया। 18वीं शताब्दी में रविविजय सेतुपति ने देवी-देवताओं के शयन-गृह व एक मंडप बनवाया। बाद में मुत्तु रामलिंग सेतुपति ने बाहरी परकोटे का निर्माण करवाया।
7. 1897– 1904 के बीच मध्य देवकोट्टई से एक परिवार ने 126 फीट ऊंचा नौ द्वार सहित पूर्वीगोपुरम निर्माण करवाया।
कैसे पहुंचे?
रामेश्वरम जाने के लिए मदुरई जो तमिलनाडु का सबसे बड़ा शहर है।उससे गुजरकर जाना होता है। रामेश्वरम के लिए भारत के सभी प्रमुख शहरों से डाइरेक्ट ट्रेन सुविधा उपलब्ध है।अगर आपके शहर से रामेश्वरम के लिए डायरेक्ट ट्रैन नहीं है, तो मदुरई जाने के लिए अवश्य होगी ही।मदुरई से कुल 89 ट्रेनें गुजरती है। मदुरई से रामेश्वरम ट्रेन से भी जा सकते है या बस से भी जा सकते हो।
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