सार

महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2022) पर ज्योतिर्लिंगों (12 Jyotirlinga) के दर्शन का विशेष महत्व है। इन सभी 12 ज्योतिर्लिंगों की अलग-अलग मान्यताएं और परंपराएं हैं। इन 12 प्रमुख ज्योतिर्लिगों में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Nageshwar Jyotirling) का स्थान दसवा है।

उज्जैन. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Nageshwar Jyotirling) गुजरात (Gujarat) के द्वारकापुरी (Dwarkapuri) से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन की शास्त्रों में बड़ी महिमा बताई गई है। उसके अनुसार जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है तथा उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा सुनता है, वह सारे पापों से छुटकारा पाकर समस्त सुखों का भोग करता हुआ अंत में भगवान शिव के परम पवित्र दिव्य धाम को प्राप्त होता है। महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2022) के मौके पर हम आपको इस ज्योतिर्लिंग से जुड़ी खास बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार है-

ये भी पढ़ें- महाशिवरात्रि पर 5 ग्रह एक ही राशि में और 6 राजयोग भी, सालों में एक बार बनता है ये दुर्लभ संयोग

ये है नागेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कथा
सुप्रिय नामक एक धर्मात्मा और सदाचारी वैश्य था। वह भगवान शिव का भक्त था। एक बार वह अपने दल के साथ नाव में बैठकर कहीं जा रहा था मगर गलती से उनकी नाव दारुक राक्षस के वन की ओर चली गई। यहां दारुक राक्षस के अनुचरों ने उन्हें पकड़कर बंदी बना लिया। विपत्ति सामने देख वह भगवान शिव का स्मरण करने लगा। उसके साथी भी ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करने लगे। जब यह बात दारुक को पता चली तो वह सुप्रिय का वध करने के लिए आया। उसे देखकर सुप्रिय भगवान शिव से रक्षा करने की विनती करने लगा। तभी वहां एक मंदिर प्रकट हुआ। उस मंदिर में एक शिवलिंग स्थापित था, साथ ही शिव परिवार भी था। देखते ही देखते भगवान शिव ने सभी राक्षसों का वध कर दिया। महादेव ने सुप्रिय से कहा कि आज से इस वन में श्रेष्ठ मुनि व चारों वर्णों के लोग रहेंगे। राक्षस इस वन में कभी निवास नहीं रहेंगे। यह देख दारुक राक्षस की पत्नी दारुका माता पार्वती की स्तुति करने लगी। प्रसन्न होकर माता पार्वती ने दारुका से वरदान मांगने के लिए कहा। दारुका ने कहा कि मेरे वंश की रक्षा कीजिए। तब पार्वती ने महादेव से कहा कि राक्षस पत्नियां जिन पुत्रों को पैदा करें, वे सब इस वन में निवास करें। ऐसी मेरी इच्छा है। तब महादेव ने कहा कि मैं भक्तों का पालन करने के लिए इस वन में रहूंगा। इस प्रकार ज्योतिर्लिंग स्वरूप महादेव वहां नागेश्वर कहलाए और पार्वती नागेश्वरी के नाम से विख्यात हुईं।

ये भी पढ़ें- Mahashivratri 2022: महाशिवरात्रि पर शाम तक रहेगा पंचग्रही योग, किस राशि पर कैसा होगा असर, जानिए राशिफल से
 

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी खास बातें
1.
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के परिसर में भगवान शिव की ध्यान मुद्रा में एक बड़ी ही मनमोहक अति विशाल प्रतिमा है।
2. यह मूर्ति 125 फीट ऊँची तथा 25 फीट चौड़ी है। यह प्रतिमा मंदिर से दो किलोमीटर की दूरी से ही दिखाई देने लगती है।
3. मंदिर का गर्भगृह सभामंडप से निचले स्तर पर स्थित है। यहां स्थित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यम बड़े आकार का है, इसके ऊपर एक चांदी का आवरण चढ़ा हुआ है।
4. ज्योतिर्लिंग पर ही एक चांदी के नाग की आकृति बनी हुई है। ज्योतिर्लिंग के पीछे माता पार्वती की मूर्ति स्थापित है।

ये भी पढ़ें- Mahashivratri 2022: यहां किया था शिवजी ने कुंभकर्ण के पुत्र का वध, उसी के नाम है महाराष्ट्र का ये ज्योतिर्लिंग

कैसे जाएं?
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारकापुरी से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान गोमती द्वारका से बेट द्वारका जाते समय रास्ते में ही पड़ता है। द्वारका से नागेश्वर-मन्दिर के लिए बस,टैक्सी आदि सड़क मार्ग के अच्छे साधन उपलब्ध होते हैं। रेलमार्ग में राजकोट से जामनगर और जामनगर रेलवे से द्वारका पहुंचा जाता है।

ये भी पढ़ें...

Mahashivratri 2022: झारखंड के इस स्थान को कहते हैं देवताओं का घर, यहां है रावण द्वारा स्थापित ज्योतिर्लिंग

Mahashivratri 2022: त्रिदेवों का प्रतीक है ये ज्योतिर्लिंग, दक्षिण की गंगा कही जाती है यहां बहने वाली ये नदी

Mahashivratri 2022: इस ज्योतिर्लिंग के शिखरों में लगा था 22 टन सोना, स्वयं महादेव करते हैं इस नगर की रक्षा

Mahashivratri 2022: पांडवों ने की थी इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना, इस वजह से सिर्फ 6 महीने होते हैं दर्शन

Mahashivratri 2022: इन देवता के नाम पर है गुजरात का ये प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग, 10 टन है इसके शिखर का भार

आंध्र प्रदेश के इस ज्योतिर्लिंग को कहते हैं दक्षिण का कैलाश, पुत्र प्रेम में यहां स्थापित हुए थे शिव-पार्वती

Mahashivratri 2022: भक्तों की रक्षा के लिए धरती फाड़कर आए थे महाकाल, आज भी ज्योतिर्लिंग रूप में है स्थापित

इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन बिना अधूरी मानी जाती है तीर्थ यात्रा, विंध्य पर्वत के तप से यहां प्रकट हुए थे महादेव