सार
आज (25 अप्रैल, रविवार) महावीर जयंती है। भगवान महावीर जैन धर्म के तीर्थंकर थे। प्राचीन जैन ग्रंथ उत्तर पुराण में तीर्थंकरों का वर्णन मिलता है।
उज्जैन. इस ग्रंथ के अनुसार वैशाली के राजा चेटक के दस पुत्र और सात पुत्रियां थीं। उनकी ज्येष्ठ पुत्री त्रिशला (प्रियकारिणी) का विवाह कुण्डलपुर (वैशाली गणराज्य) के तत्कालीन राजा सिद्धार्थ से हुआ था। आषाढ़ शुक्ल षष्ठी तिथि पर जब रानी त्रिशला सो रही थीं, उन्होंने सोलह शुभ मंगलकारी स्वप्न देखे। सुबह जागने पर महारानी त्रिशला के महाराज सिद्धार्थ से अपने स्वप्नों की चर्चा की और उसका फल जानने की इच्छा प्रकट की। राजा सिद्धार्थ एक कुशल राजनीतिज्ञ के साथ ही ज्योतिष शास्त्र के भी विद्वान थे। उन्होंने रानी से कहा कि एक-एक कर अपना स्वप्न बताएं। वे उसी प्रकार उसका फल बताते महारानी को बताएंगे। ये स्वप्न और उनके अर्थ इस प्रकार हैं…
1. रानी ने पहला स्वप्न बताया- स्वप्न में एक अति विशाल श्वेत हाथी दिखाई दिया।
राजा ने फल बताया- उन्हें एक अद्भुत पुत्र-रत्न उत्पन्न होगा।
2. दूसरा स्वप्न- श्वेत वृषभ।
फल- वह पुत्र जगत का कल्याण करने वाला होगा।
3. तीसरा स्वप्न- श्वेत वर्ण और लाल अयालों वाला सिंह।
फल- वह पुत्र सिंह के समान बलशाली होगा।
4. चौथा स्वप्न- कमलासन लक्ष्मी का अभिषेक करते हुए दो हाथी।
फल- देवलोक से देवगण आकर उस पुत्र का अभिषेक करेंगे।
5. पांचवां स्वप्न- दो सुगंधित पुष्पमालाएं।
फल- वह धर्म तीर्थ स्थापित करेगा और जन-जन द्वारा पूजित होगा।
6. छठा स्वप्न- पूर्ण चन्द्रमा।
फल : उसके जन्म से तीनों लोक आनंदित होंगे।
7. सातवां स्वप्न- उदय होता सूर्य।
फल- वह पुत्र सूर्य के समान तेजयुक्त और पापी प्राणियों का उद्धारक होगा।
8. आठवां स्वप्न- कमल पत्रों से ढंके हुए दो स्वर्ण कलश।
फल- वह पुत्र अनेक निधियों का स्वामी निधिपति होगा।
9. नौवां स्वप्न- कमल सरोवर में क्रीड़ा करती दो मछलियां।
फल- महाआनंद का दाता, दुखहर्ता।
10. दसवां स्वप्न- कमलों से भरा जलाशय।
फल- एक हजार आठ शुभ लक्षणों से युक्त पुत्र।
11. ग्यारहवां स्वप्न- लहरें उछालता समुद्र।
फल- भूत-भविष्य-वर्तमान का ज्ञाता केवली पुत्र।
12. बारहवां स्वप्न- हीरे-मोती और रत्नजडि़त स्वर्ण सिंहासन।
फल- राज्य का स्वामी और प्रजा का हितचिंतक पुत्र।
13. तेरहवां स्वप्न- स्वर्ग का विमान।
फल- इस जन्म से पूर्व वह पुत्र स्वर्ग में देवता होगा।
14. चौदहवां स्वप्न- पृथ्वी को भेद कर निकलता नागों के राजा नागेन्द्र का विमान।
फल- जन्म से ही वह पुत्र त्रिकालदर्शी होगा।
15. पन्द्रहवां स्वप्न- रत्नों का ढेर।
फल- वह पुत्र अनंत गुणों से संपन्न होगा।
16. सोलहवां स्वप्न- धुआंरहित अग्नि।
वह पुत्र कर्मों का अंत करके मोक्ष (निर्वाण) प्राप्त करेगा।