सार

हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। इस तिथि पर भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए व्रत और पूजा की जाती है। वैसे तो साल में 24 एकादशी तिथि आती है, लेकिन जिस वर्ष अधिक मास होता है, उस समय इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।

उज्जैन. साल की सभी एकादशी तिथियों से जुड़ी अलग-अलग मान्यताएं, परंपराएं और कथाएं धर्म ग्रंथों में बताई गई हैं। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोहिनी एकादशी कहते हैं। मान्यता है कि इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया था। इसलिए इसे मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi 2022) कहते हैं। इस बार ये तिथि 12 मई, गुरुवार को है। इस अवतार में भगवान विष्णु ने देवताओं को अमृत पिलाया था। भगवान विष्णु को मोहिनी अवतार क्यों लेना पड़ा, इससे जुड़ी कथा इस प्रकार है…

इसलिए भगवान विष्णु ने लिया मोहिनी अवतार?
- पुराणों के अनुसार, एक बार ऋषि दुर्वासा ने देवराज इंद्र को पारिजात फूलों की दिव्य माला भेंट की, लेकिन इंद्र को स्वर्ग का स्वामी होने के अभिमान था, उन्होंने उसी घमंड में वो दिव्य माला अपने हाथी ऐरावत को पहना दी और ऐरावत ने वो माला सूंड में लपेटकर फेंक दी।
- अपनी दिव्य माला की ये दुर्दशा देखकर ऋषि दुर्वासा बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने इंद्र सहित पूरे स्वर्ग को श्रीहीन होने का श्राप दे दिया। इस श्राप के चलते देवी लक्ष्मी भी अपने स्थान से लुप्त हो गई और समुद्र में समा गई। स्वर्ग को श्रीहीन अवस्था में देखकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। 
- भगवान विष्णु ने देवताओं से कहा कि “तुम और दैत्य साथ मिलकर समुद्र मंथन करो। इससे स्वर्ग फिर से धन-संपत्ति के पूर्ण हो जाएगा। साथ ही अन्य अमृत भी मिलेगा। देवताओं ने दैत्यों को इस काम के लिए राजी किया और दोनों पक्ष मिलकर समुद्र मंथन को तैयार हो गए।
- मदरांचल पर्वत को समुद्र में स्थापित कर वासुकि नाग की नेती बनाई गई। एक और देवता और दूसरी और दैत्यों ने वासुकि को पकड़कर समुद्र को मथना शुरू किया। सबसे पहले समुद्र से कालकूट नाम का विष निकला, जिसे भगवान शिव ने ग्रहण कर लिया।
- उसके बाद एक-एक बार अन्य रत्न भी निकलते गए। इनमें से कुछ देवताओं ने कुछ दैत्यों ने रख लिए। सबसे अंत में में धन्वतंरि अमृत कलश लेकर निकले। देवता और दैत्यों में अमृत पीने के लिए युद्ध होने लगा। तभी भगवान विष्णु मोहिनी अवतार लेकर वहां पहुंचें।
- मोहिनी रूपी भगवान विष्णु ने सभी को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वे स्वयं दोनों पक्षों को बारी-बारी से अमृत पिलाएंगे। लेकिन वास्तव में मोहिनी सिर्फ देवताओं को ही अमृत पिला रही थी, दैत्यों के साथ छल कर रही थी। ये बात एक दैत्य स्वरभानु को पता चल गई।
- स्वरभानु देवताओं का रूप लेकर उनके साथ जाकर बैठ गया और अमृत भी पी लिया। तभी सूर्य और चंद्रमा ने उसे पहचान लिया और भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका गला काट दिया, लेकिन अमृत पी लेने की वजह से उसकी मृत्यु नही हुई, लेकिन उसका शरीर दो हिस्सों में बंट गया।
- देवताओं ने दैत्यों पर विजय प्राप्त की और स्वर्ग भी फिर से श्रीयुक्त हो गया। उसका सुख-संपदा फिर से लौट आई और देवी लक्ष्मी भी अपने स्वामी भगवान विष्णु के पास लौट आई।

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