सार
Pongal 2023: मकर संक्रांति का पर्व देश के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। तमिलनाडु में ये पर्व पोंगल के रूप में मनाया जाता है। ये उत्सव 4 दिनों तक चलता है। इस त्योहार से भी कई परंपराएं और मान्यताएं जुड़ी हैं।
उज्जैन. पोंगल तमिलनाडु का प्रमुख त्योहार है। ये उत्सव मकर संक्रांति के मौके पर बड़े ही धूम-धाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। (History of Pongal) ये उत्सव 4 दिनों तक चलता है। इस बार पोंगल उत्सव 15 से 18 जनवरी तक मनाया जाएगा। ये त्योहार खेती और भगवान सूर्य से संबंधित हैं। इस पर्व से जुड़ी कई मान्यताएं और परंपराएं इसे और भी खास बनाती हैं। पहले दिन भोगी पोंगल, दूसरे दिन सूर्य पोंगल, तीसरे दिन मट्टू पोंगल और चौथे दिन कानुम पोंगल मनाते हैं। इस त्योहार से नए साल की शुरूआत भी मानी जाती है। (Stories of Pongal) पोंगल का पर्व कब और कैसे शुरू हुआ, इसके पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं। आगे जानिए इन कथाओं के बारे में…
इसलिए पोंगल पर करते हैं बैलों की पूजा
पोंगल की एक कथा भगवान शिव से जुड़ी है। इस कथा के अनुसार, एक बार शिवजी ने अपने वाहन यानी नंदी को स्वर्ग से पृथ्वी पर संदेश देने भेजा। महादेव ने नंदी से कहा कि ” पृथ्वी पर जाकर लोगों से कहो कि सभी मनुष्यों को रोज तेल से स्नान करना चाहिए और महीने में सिर्फ एक दिन खाना खाना चाहिए” पृथ्वी पर आते-आते नंदी महादेव का संदेश भूल गए और उन्होंने लोगों से कहा कि “ मनुष्यों को रोजाना खाना खाना चाहिए और एक दिन तेल से स्नान करना चाहिए।” जब ये बात महादेव को पता चली तो वे नंदी पर क्रोधित हो गए और उन्होंने नंदी को श्राप दिया कि उन्हें पृथ्वी पर रहकर हल जोतना पड़ेगा। बाद में महादेव ने ये भी कहा कि साल में एक दिन पृथ्वीवासी तुम्हारी पूजा करेंगे। माना जाता है कि तभी से पोंगल उत्सव मनाया जाता है और फसल की अच्छी पैदावार के लिए बैलों की पूजा की जाती है।
एक कथा ये भी प्रचलित
पोंगल की एक अन्य कथा भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है। उसके अनुसार, एक बार देवताओं के राजा इंद्र को इस बात पर अहंकार हो गया कि उनके बिना पानी बरसाए पृथ्वी पर खेती कर पाना संभव नहीं है, इसलिए लोग उनकी पूजा करते हैं। जब ये बात श्रीकृष्ण को पता चली तो उनके कहने पर ग्रामवासियों ने इंद्र की पूजा नहीं की। इंद्र इस बात पर क्रोधित हो गए और मूसलाधार बारिश करने लगे। ग्रामवासियों को बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठा लिया और कई दिनों तक ऐसे ही खड़े रहे। जब इंद्र ने ये देखा तो इंद्रदेव का अभिमान टूट गया और उन्होंने आकर श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की। इसके बाद नई फसलें आने पर श्रीकृष्ण के साथ सभी ग्रामवासियों ने उत्सव मनाया, तभी से पोंगल का त्योहार मनाया जा रहा है।
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