सार

त्रेतायुग से संबंधित रामसेतु (Ram Setu) एक बार फिर चर्चाओं में है। बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी (BJP leader Subramanian Swamy) ने राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक (National Monument) घोषित कर संरक्षण देने की मांग पर जल्द सुनवाई की मांग की है। चीफ जस्टिस ने मामला 9 मार्च को सुनने का आश्वासन दिया है।

उज्जैन. यूपीए के शासनकाल में शुरू की गई सेतु समुद्रम परियोजना (Sethu Samudram Project) के तहत जहाजों के लिए रास्ता बनाने के लिए राम सेतु को तोड़ा जाना था। बाद में यह कार्रवाई रुक गई थी। राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग वाली याचिका काफी समय से लंबित है। रामसेतु करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र है। वाल्मीकि रामायण (Valmiki Ramayana) और गोस्वामी तुलसीदास (Goswami Tulsidas) द्वारा रचित रामचरितमानस (Ramcharit Manas) सहित अन्य ग्रंथों में भी रामसेतु का वर्णन मिलता है। जानिए ग्रंथों में क्या लिखा है रामसेतु के बारे में…
 

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क्यों पड़ी समुद्र पर पुल बनाने की आवश्यकता?
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, जब राक्षसराज रावण ने श्रीराम की पत्नी सीता का हरण कर लंका में कैद कर लिया तो समुद्र पार जाने के लिए श्रीराम ने समुद्र देवता से विनती की। कई दिनों तक जब समुद्र देवता प्रकट नहीं हुए तो भगवान श्रीराम क्रोधित हो गए। वे समुद्र को सुखाने के लिए बाण चलाने ही वाले थे कि समुद्र देवता प्रकट हुए और उन्होंने श्रीराम से क्षमा मांगी और कहा कि समुद्र के बीच से रास्ता देना प्रकृति के नियमों का उल्लंघन होगा। समुद्र देवता ने ही श्रीराम को पुल बनाने की सलाह भी दी। 

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इनके पुत्र ने बनाया था रामसेतु
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम के आदेश पर समुद्र पर पत्थरों से पुल का निर्माण किया गया था। रामसेतु का निर्माण मूल रूप से नल नाम के वानर ने किया था। नल शिल्पकला (इंजीनियरिंग) जानता था क्योंकि वह देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा का पुत्र था। अपनी इसी कला से उसने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था। अगर ये कहा जाए कि नल रामसेतु बनाने वाला प्रमुख इंजीनियर था को गलत नहीं होगा। समुद्र पर पुल बनाने में 5 दिन का समय लगा। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था। इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। यह पुल 10 योजन चौड़ा था।

श्रीराम ने स्वयं ही तोड़ा था ये पुल
पद्म पुराण के अनुसार लंका विजय के बाद श्रीराम ने विभीषण को वहां का राजा बना दिया और स्वयं अयोध्या आ गए। कुछ समय बाद जब श्रीराम लंका गए तो विभीषण ने कहा कि “सेतु (पुल) के मार्ग से जब मानव यहां आकर मुझे सताएंगे, उस स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए?” विभीषण के ऐसा कहने पर श्रीराम ने अपने बाणों से उस सेतु के दो टुकड़े कर दिए। फिर तीन भाग करके बीच का हिस्सा भी अपने बाणों से तोड़ दिया। इस तरह स्वयं श्रीराम ने ही रामसेतु तोड़ा था।  

 

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