सार
Salaam Aarti Karnataka: हाल ही में कर्नाटक सरकार ने वहां के मंदिरों में की जा रही सलाम आरती का नाम बदलकर संध्या आरती करने का निर्णय लिया है। इसके पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं। सलाम आरती की परंपरा टीपू सुल्तान के समय से चली आ रही थी।
उज्जैन. हिंदू धर्म में पूजा के अंत में आरती जरूर की जाती है। ये पूजा की जरूरी परंपराओं में से एक है। देश के कई मंदिरों में विशेष आरती भी की जाती है। हाल ही में कर्नाटक सरकार ने वहां के मंदिरों में पिछले 300 सालों से चली आ रही ‘सलाम’ आरती का नाम बदलकर संध्या आरती करने का निर्णय लिया है। इसके पीछे उनका कहना है कि सलाम आरती की परंपरा 18वीं शताब्दी के शासक टीपू सुल्तान के समय से मंदिरों में चली आ रही थी। इसके पहले ऐसी कोई परंपरा नहीं थी और न ही धर्म ग्रंथों में इस तरह की किसी आरती का वर्णन मिलता है। इस मौके पर हम आपको बता रहे हैं कि दिन में कितनी बार भगवान की आरती करने की परंपरा हिंदू धर्म में बनाई गई है…
मंगला आरती
धर्म ग्रंथों के अनुसार, ये आरती सुबह 3 से 4 बजे के बीच की जाती है। हालांकि सभी मंदिरों में ये आरती नहीं की जाती। प्रमुख मंदिरों में ही मंगला आरती करने का विधान है। उत्तर प्रदेश के वृंदावन में स्थित बांके बिहारी मंदिर में साल में सिर्फ एक बार जन्माष्टमी पर मंगला आरती का जाती है, जिसे देखने के लिए हजारों भक्त वहां जाते हैं।
दद्योदक आरती
ये आरती सुबह 6 से 7 बजे के बीच करने की परंपरा है। कुछ स्थानों पर इसे पूजा आरती भी कहा जाता है। मौसम के अनुसार प्रमुख मंदिरों मे इसके समय में आंशिक परिवर्तन भी होता रहता है। इस आरती से पहले भगवान को स्नान करवाया जाता है और भोग लगाया जाता है।
श्रृंगार आरती
ये आरती सुबह 9 से 10 बजे के बीच में की जाती है। इस समय भगवान का विधि-विधान पूर्वक श्रृंगार किया जाता है व परंपरा के अनुसार, विशेष भोग लगाया जाता है। कुछ स्थानों पर इसे भोग आरती भी कहते हैं। ये दिन की प्रमुख आरती होती है। मान्यता है कि इस भोग को ही भगवान आहार के रूप में ग्रहण करते हैं।
पूजा आरती
शाम को 5 बजे के लगभग एक बार फिर से पूजा आरती की जाती है। इस समय सुबह किया गया श्रृंगार हटा दिया जाता है और पुन: नया श्रृंगार किया जाता है। परंपरा अनुसार, भोग लगाया जाता है और आरती की जाती है। इस आरती में भी स्थानीय परंपरा का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है।
संध्या आरती
ये आरती शाम को 7 बजे के करीब की जाती है। ये शाम की प्रमुख आरती होती है। इस समय भगवान का नया श्रृंगार किया जाता है और कुछ खास चीजों का भोग लगाया जाता है। मान्यता है कि इस समय भगवान विश्राम अवस्था में होते हैं। ये आरती लगभग हर मंदिर में विशेष रूप से की जाती है।
शयन आरती
मंदिर के पट बंद करने से पहले शयन आरती जरूर की जाती है। इसके बाद गर्भगृह के दरवाजे लगा दिए जाते हैं और आम श्रृद्धालुओं का मंदिर में प्रवेश रोक दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि शयन आरती के बाद भगवान सो जाते हैं जो अगली सुबह ही उठते हैं।
पूजा के बाद आरती क्यों करनी चाहिए?
हिंदू धर्म में पूजा के दौरान कई परंपराएं निभाई जाती है, आरती भी इनमें से एक है। किसी भी देवता की पूजा के बाद आरती जरूर की जाती है। बिना आरती के पूजा अधूरी मानी जाती है। इसलिए आरती जरूरी परंपराओं में से एकहै। स्कंद पुराण के अनुसार, जो व्यक्ति पूजा के बाद देवताओं की आरती करता है, उसे स्वर्गलोक में स्थान प्राप्त होता है।
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