सार

शिवपुराण में भगवान शिव से संबंधित अनेक कथाओं का वर्णन है। सावन के इस पवित्र महीने में हम आज आपको शिवजी से जुड़ी एक ऐसी ही कथा बता रहे हैं।

उज्जैन. महादेव ने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य को निगल लिया था और बाद में जब शुक्राचार्य पुनः शिवजी के शरीर से बाहर आए तो माता पार्वती ने अपना पुत्र माना था। ये पूरी कथा इस प्रकार है-

जब अंधक ने किया स्वर्ग पर अधिकार
शिवपुराण की रुद्रसंहिता के अनुसार, अंधक नाम का एक महापराक्रमी राक्षस था, वह जन्म से ही अंधा था। उसने ब्रह्माजी को तपस्या से प्रसन्न कर दिव्य नेत्र प्राप्त कर लिए और देवता, दानव, गंधर्व आदि किसी से भी पराजित न होने का वरदान ले लिया। वरदान पाकर अंधक ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया उस पर भी अधिकार कर लिया।

महादेव ने क्यों निगला शुक्राचार्य को?
अपनी शक्ति के अभिमान में अंधक ने महादेव पर भी आक्रमण कर दिया। तब सभी देवताओं ने मिलकर उससे युद्ध किया। यह युद्ध बहुत समय तक चलता रहा। इस युद्ध में हजारों दैत्य मारे गए। दैत्यों के मारे जाने से दुखी होकर अंधक शुक्राचार्य के पास गया और उनसे मृतसंजीवनी विद्या द्वारा मरे हुए राक्षसों को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की। अंधक की बात मानकर गुरु शुक्राचार्य ने मृतसंजीवनी विद्या द्वारा मरे हुए राक्षसों को पुनर्जीवित कर दिया। यह देखकर देवता निराश हो गए। जब यह बात शिवजी को पता चली तो उन्होंने शुक्राचार्य को निगल लिया।

शिवजी के पेट में क्या दिखा शुक्राचार्य को?
महादेव द्वारा शुक्राचार्य को निगलने के बाद अंधक की सेना कमजोर हो गई और अंत में देवताओं की विजय हुई। इधर भगवान शिव के पेट में शुक्राचार्य बाहर आने का रास्ता खोजने लगे। शुक्राचार्य को महादेव के पेट में सातों लोक, ब्रह्मा, नारायण, इंद्र आदि पूरी सृष्टि के दर्शन हुए। इस तरह शुक्राचार्य सौ सालों तक महादेव के पेट में ही रहे। अंत में जब शुक्राचार्य बाहर नहीं निकल सके तो वे शिवजी के पेट में ही मंत्र जाप करने लगे।

शिवजी के पेट से कैसे बाहर आए शुक्राचार्य?
इस मंत्र के प्रभाव से शुक्राचार्य महादेव के शुक्र रूप में लिंग मार्ग से बाहर निकले। तब उन्होंने शिवजी को प्रणाम किया। शुक्राचार्य को लिंग मार्ग से बाहर निकला देख भगवान शिव ने उनसे कहा कि- चूंकि तुम मेरे लिंग मार्ग से शुक्र की तरह निकलो हो, इसलिए अब तुम मेरे पुत्र कहलाओगे। महादेव के मुख से ऐसी बात सुनकर शुक्राचार्य ने उनकी स्तुति की। माता पार्वती ने भी शुक्राचार्य को अपना पुत्र मानकर बहुत से वरदान दिए।