सार

भगवान शिव एकमात्र ऐसे देवता हैं, जो सिर्फ एक लोटा जल चढ़ाने से भी प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों की हर परेशानी दूर कर देते हैं, लेकिन जब उन्हें क्रोध आता है तो वे सृष्टि का विनाश भी कर देते हैं। भगवान शिव के स्वरूप से कई अस्त्र-शस्त्र जुड़े हैं।

उज्जैन. भगवान शिव के स्वरूप से कई अस्त्र-शस्त्र जुड़े हैं। महादेव ने प्रसन्न होकर अपने भक्तों को ये अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए थे, भले ही वो राक्षस हो या देवता। इन अस्त्रों में पूरी सृष्टि को भस्म करने की शक्ति थी। रामायण (Ramayan) और महाभारत (Mahabharat) आदि ग्रंथों में कई बार इनका वर्णन भी आया है। सावन मास (Sawan 2021) में आज हम आपको शिवजी के इन्हीं अस्त्र-शस्त्रों के बारे में बता रहे हैं…

पिनाक धनुष
भगवान शिव के ये धनुष महाप्रलयंकारी है। देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा ने स्वयं इसका निर्माण किया है। भगवान शिव ने इसी धनुष से त्रिपुरों का नाश किया था। इसलिए भगवान शिव का एक नाम त्रिपुरारी भी है। बाद में भगवान शिव ने ये धनुष अपने परम भक्त राजा देवरात को सौंप दिया था। ये राजा जनक के पूर्वज थे। देवी सीता के स्वयंवर में जब भगवान श्रीराम के हाथों ये धनुष भंग हो गया था।

त्रिशूल
भगवान शिव के हाथों में सदैव त्रिशूल नजर आता है। ये अस्त्र भगवान शिव के स्वरूप से जुड़ा है। इस त्रिशूल ने भगवान शिव ने अनेक राक्षसों का वध किया था। राक्षसराज रावण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे अपने त्रिशूल प्रदान कर दिया था। रावण की मृत्यु के बाद त्रिशूल स्वयंमेव शिवजी के पास चला गया। शिवजी का त्रिशूल महाअस्त्र था।

चक्र
आमतौर पर चक्र भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण के स्वरूप से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन धर्म ग्रंथों के अनुसार, उन्हें ये चक्र भगवान शिव ने ही प्रदान किया था। एक बार जब भगवान विष्णु शिवजी की पूजा कर रहे थे, पूजा में एक फूल कम पड़ गया। तब विष्णु ने अपनी आंख शिवजी को चढ़ाने लगे। उनकी भक्ति देखकर शिवजी प्रकट हुए और विष्णुजी को अपना प्रिय चक्र प्रदान किया। बाद में चक्र परशुराम और भगवान कृष्ण को मिला।

खडग
इसी अस्त्र से मेघनाद ने लक्ष्मण पर वारकर उन्हें घायल कर दिया था। मेघनाद पराक्रम में रावण से भी अधिक था। उसने भगवान शिव की घोर तपस्या की और उनसे खड्ग प्राप्त किया। ये अजेय अस्त्र था, इसलिए लक्ष्मण इसके वार से घायल हो गए थे।

पाशुपात
इस अस्त्र का वर्णन अनेक धर्म ग्रंथों में मिलता है। महाभारत के अनुसार अर्जुन ने घोर तपस्या कर शिवजी से ये अस्त्र प्राप्त किया था। इसी अस्त्र से कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन ने कई योद्धाओं का वध किया था।

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