सार
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि ग्रह हर ढाई साल में राशि बदलता है। जब भी ये ग्रह राशि परिवर्तन करता है किसी के बुरे दिन शुरू हो जाते हैं तो कुछ राशि वालों को राहत मिल जाती है। इस बार 29 अप्रैल को शनिदेव (Shani Rashi Parivartan 2022) राशि बदलकर मकर से कुंभ में प्रवेश करने जा रहा है।
उज्जैन. शनिदेव से जुड़ी कई मान्यताएं और परंपराएं भी हमारे समाज में प्रचलित हैं। वहीं शनिदेव से जुड़े कई प्रसंग हमारे धर्म ग्रंथों में बताए गए हैं। शनिदेव की नजर अशुभ क्यों है, शनिदेव धीरे-धीरे क्यों चलते हैं और हनुमानजी की पूजा करने वालों को शनिदेव क्यों कष्ट नहीं देते। आदि कई मान्यताएं इन प्रसंगों के स्पष्ट होती हैं। शनि के राशि परिवर्तन के अवसर पर जानिए शनिदेव से जुड़ी कुछ ऐसी ही अनोखी कथाएं…
इसलिए शनि की नजर को मानते हैं अशुभ
धर्म ग्रंथों के अनुसार, शनिदेव का विवाह चित्ररथ गंधर्व की पुत्री से हुआ था, जो स्वभाव से बहुत ही उग्र थी। एक बार उनकी पत्नी ऋतु स्नान के बाद मिलन की इच्छा से उनके पास गई ,लेकिन उस समय शनिदेव भगवान की आराधना में लीन थे। जब शनिदेव का ध्यान भंग हुआ तब तक उनकी पत्नी का ऋतुकाल समाप्त हो चुका था। क्रोधित होकर शनिदेव की पत्नी ने उन्हें श्राप दे दिया कि अब आप जिसे भी देखेंगे, उसका कुछ न कुछ अहित हो जाएगा। इसी वजह से शनिदेव की दृष्टि में दोष माना गया है।
शनिदेव इसलिए चलते हैं धीरे-धीरे
पुराणों के अनुसार, भगवान शंकर ने दधीचि मुनि के यहां पिप्पलाद नाम से पुत्र रूप में जन्म लिया। लेकिन शनिदेव की दृष्टि के कारण दधीचि मुनि की मृत्यु हो गई। जब ये बात पिप्पलाद को बता चली तो उन्होंने शनिदेव पर ब्रह्म दंड का प्रहार किया। वो ब्रह्मदंड उनके पैर पर आकर लगा। जिसके कराण शनिदेव लंगड़े हो गए। तब देवताओं ने पिप्पलाद मुनि से शनिदेव को क्षमा करने के लिए कहा। देवताओं के आग्रह पर पिप्पलाद मुनि से शनिदेव को क्षमा कर दिया और वचन लिया कि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक वे शिवभक्तों को कष्ट नहीं देंगे।
शनिदेव के देखने से कटा था श्रीगणेश का मस्तक
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार जब गणेशजी का जन्म हुआ तब सभी देवी देवता उनके दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत पहुंचे। शनिदेव भी वहां गए, लेकिन किसी अनिष्ठ के भय से उन्होंने बालक गणेश को देखा नहीं। माता पार्वती के कहने पर जैसे ही शनिदेव ने गणेश को देखा तो उनका सिर धड़ से अलग हो गया। ये देख माता पार्वती विलाप करने लगी। ऐसी अनहोनी घटना देखकर सभी देवी देवता चिंतित हो उठे। तभी विष्णु भगवान ने हाथी के बच्चे का सिर लाकर बालक गणेश के धड़ से जोड़ दिया और उन्हें पुनर्जीवित कर दिया।
जब शनिदेव से युद्ध करने पहुंचें राजा दशरथ
पद्म पुराण के अनुसार, एक बार शनिदेव कृत्तिका नक्षत्र के अंत में पहुंच गए और वे रोहिणी नक्षत्र का भेदन करके आगे जाने वाले थे। ऐसा होने से संसार में 12 सालों तक भयंकर अकाल पड़ने का खतरा था। ये बात जब अयोध्या के राजा दशरथ को पता चली तो वे अपने दिव्यास्त्र लेकर नक्षत्र मंडल में शनिदेव से युद्ध करने पहुंच गए। उनकी इस वीरता को देखकर शनिदेव प्रसन्न हुए और उन्होंने ये वरदान दिया कि वे कभी रोहिणी भेदन नहीं करेंगे और न्याय करने वालों को कभी कष्ट नहीं पहुंचाएंगे।
हनुमानजी ने किया शनिदेव को परास्त
एक बार हनुमानजी किसी स्थान पर बैठकर भगवान श्रीराम का जाप कर रहे थे। उसी समय वहां से शनिदेव का निकलना हुआ। हनुमानजी को देखकर शनिदेव ने उन पर अपनी वक्र दृष्टि डालनी चाही, लेकिन हनुमानजी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। ये देखकर उन्हें और गुस्सा आ गया और वे हनुमानजी का ध्यान भंग करने लगे। ध्यान भंग होते हुए हनुमानजी ने शनिदेव को अपनी पूँछ में लपेटकर पहाड़ों और वृक्षों पर पटकना शुरू किया। आखिर में शनिदेव को हनुमानजी से क्षमा मांगनी पड़ी। शनिदेव ने हनुमानजी से कहा कि मैं आपके भक्तों को अब कभी कष्ट नहीं पहुंचाऊँगा।
ये भी पढ़ें-
Shani Rashi Parivartan 2022: शनि के राशि परिवर्तन से किसके शुरू होंगे बुरे दिन? ये हैं खास उपाय
Budh Grah Parivartan April 2022: 25 अप्रैल को बुध करेगा वृष राशि में प्रवेश, कैसा होगा आपकी राशि पर असर?
Varuthini Ekadashi 2022: कब है वरुथिनी एकादशी? जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा