सार
माघ महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी और द्वादशी तिथि पर भगवान विष्णु की तिल से पूजा करने की परंपरा है। इन दो दिनों में सुबह जल्दी उठकर तीर्थ-स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा होती है।
उज्जैन. तिल से बनी मिठाइयों का नेवेद्य लगाया जाता है और व्रत के दौरान फलाहार में तिल से बनी चीजें ही खाई जाती है। पुराणों के अनुसार, इन दो दिनों में तिल से पूजा करने पर अश्वमेध यज्ञ करने जितना पुण्य मिलता है। 28 जनवरी, शुक्रवार को षट्तिला एकादशी (Shattila Ekadashi 2022) है और इसके अगले दिन 29 जनवरी, शनिवार को तिल द्वादशी (Til Dwadashi 2022) व्रत किया जाएगा। आगे जानिए इन दिनों व्रतों से जुड़ी खास बातें…
28 जनवरी को किया जाएगा षटतिला एकादशी का व्रत
इस दिन 6 तरह से तिल का उपयोग किया जाता है। इसलिए इसे षटतिला कहते हैं। महाभारत और पद्म पुराण के मुताबिक इस तिथि पर तिल के तेल का उबटन लगाना, तिल मिले पानी से नहाना, तिल का भोजन करना, तिल से हवन और तर्पण के साथ ही तिलों का दान करना होता है।
ये है महत्व
ऐसा करने से हर तरह के कष्ट और पापों का नाश होता है और मोक्ष मिलता है। तिल से एकादशी पर पूजा और व्रत करने से स्वर्णदान का फल मिलता है। साथ ही तिल का दान करने से कई गुना पुण्य मिलता है। विद्वानों का कहना है कि तिल दान करने पर कन्यादान जितना पुण्य मिलता है।
29 जनवरी को किया जाएगा तिल द्वादशी व्रत
षटतिला एकादशी के अगले दिन तिल द्वादशी व्रत किया जाता है। इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ स्नान किया जाता है। ये न कर पाएं तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर नहा सकते हैं। इसके बाद तिल के जल से भगवान विष्णु का अभिषेक किया जाता है और अन्य पूजन सामग्री के साथ तिल भी चढ़ाए जाते हैं। पूजा के बाद तिल का ही नैवेद्य लगाया जाता है और उसका प्रसाद लिया जाता है।
ये है महत्व
तिल द्वादशी व्रत करने से हर तरह का सुख और वैभव मिलता है। ये व्रत कलियुग के सभी पापों का नाश करने वाला व्रत माना गया है। पद्म पुराण में बताया गया है कि इस व्रत में ब्राह्मण को तिलों का दान, पितृ तर्पण, हवन, यज्ञ, करने से अश्वमेध यज्ञ करने जितना फल मिलता है।