सार

Swastika banned in Australia: हिंदू धर्म में स्वास्तिक को शुभ चिह्न माना जाता है। इसे भगवान श्रीगणेश का प्रतीक मानकर इसकी पूजा की जाती है। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के दो स्टेट साउथ वेल्स और विक्टोरिया में स्वास्तिक पर बैन लगा दिया गया है।

उज्जैन. कोई भी शुभ कार्य करते समय स्वास्तिक का चिह्न भी जरूर बनाया जाता है। इसे सातिया भी कहते हैं। हिंदू नहीं बल्कि जैन और बौद्ध धर्म में भी इसका उपयोग किया जाता है। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने अपने दो स्टेट साउथ वेल्स और विक्टोरिया में स्वास्तिक पर बैन लगा दिया गया है। यहां स्वास्तिक के निशान को किसी भी तरह से दिखाना अब अपराध माना जाएगा। हालांकि, इन दोनों ही जगहों पर हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म के लोग इस चिह्न का धार्मिक उपयोग कर पाएंगे। संभावना ये भी जताई जा रही है कि बहुल ही जल्दी ऑस्ट्रेलिया क्वींसलैंड और तस्मानिया में भी स्वास्तिक को बैन कर देगा।

क्या है स्वास्तिक को लेकर विवाद? (What is the dispute of swastika)
हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म में भले ही स्वास्तिक को शुभ चिह्न माना जाता है लेकिन दुनिया के कई देशों में इसे बैन किया गया है क्योंकि यह नाजियों का प्रतीक है। कट्टरपंथी संगठन इसका इस्तेमाल करते हैं। जब हिटलर जर्मनी का शासक बना तो उसके मन में एक एसे झंडे का विचार आया जो जर्मन सेना की पहचान बन जाए और जिसे देखते ही नाजियों में जोश भर जाए।  तब लाल रंग का एक ऐसा झंडा अस्तित्व में आया, जिसके बीच में सफेद रंग का एक सर्किल बना था। इस सर्किल के अंदर 45 डिग्री झुका एक स्वास्तिक का निशान था। 


स्वास्तिक कैसे बना कट्टरपंथियों की पहचान?
हिटलर ने जो झंडा बनाया था उसमें इस्तेमाल होने वाला लाल रंग समाजवाद, सफेद रंग जर्मन राष्ट्रवाद और स्वास्तिक का निशान नाजी लोगों के संघर्ष का प्रतीक था। जब हिटलर की नाजी सेना सत्ता में आई तो वह हाथों में झंडे लेकर यहूदियों का नरसंहार करने लगी, जिसमें लाखों लोग मारे गए। इसके बाद से स्वास्तिक के चिह्न को यहूदी-विरोधी, नस्लवादी और फासीवादी का प्रतीक माना जाने लगा। 

कैसे लगा स्वास्तिक पर प्रतिबंध? (How was the ban on the swastika?)
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद कई यूरोपीय देशों के दवाब में आकर जर्मनी ने इस झंडे और स्वास्तिक के निशान पर प्रतिबंध लगा दिया। कई अन्य देशों में भी इसके इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी गई। तब से आज तक इस झंडे और स्वास्तिक के निशान को लेकर विवाद चला आ रहा है। जुलाई 2020 में फिनलैंड ने अपनी वायु सेना के प्रतीक चिह्न से स्वास्तिक हटा दिया था। इतना ही नहीं कुछ समय पहले अमेरिका के मैरीलैंड राज्य में स्वास्तिक को बैन करने के लिए एक बिल पेश हुआ था। 

हिंदू धर्म में स्वास्तिक का महत्व (Significance of Swastika in Hinduism)
हिंदू धर्म में स्वास्तिक का उपयोग हजारों सालों से किया जा रहा है। स्वास्तिक शब्द सु+अस+क शब्दों से मिलकर बना है। जिसका अर्थ है मंगल करने वाला। इस चिह्न को भगवान श्रीगणेश का प्रतीक भी माना जाता है। जब भी कोई शुभ कार्य होता है तो उसमें सबसे पहले स्वास्तिक का चिह्न जरूर बनाया जाता है। पूजा के लिए स्थापित पानी से भरे कलश पर भी स्वास्तिक बनाने की परंपरा है। मां लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा में स्वास्तिक विशेष रूप से बनाया जाता है। धर्म ग्रंथो में स्वास्तिक को चार युग, चार आश्रम (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) का प्रतीक भी माना गया है।

जैन और बौद्ध धर्म में स्वास्तिक का महत्व (Significance of Swastika in Jainism and Buddhism)
जैन धर्म में भी स्वास्तिक के निशान को बहुत ही शुभ माना गया है। जैन धर्म में इसे सातवां जिन का प्रतीक माना गया है, जिसे सब तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के नाम से भी जानते हैं। श्वेताम्बर जैनी स्वास्तिक को अष्ट मंगल का मुख्य प्रतीक मानते हैं। वहीं बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को अच्छे भाग्य का प्रतीक माना गया है। यह भगवान बुद्ध के चरण चिह्नों को प्रदर्शित करता है, इसलिए इसे इतना पवित्र माना जाता है। यही नहीं ये शुभ चिह्न बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों में भी अंकित है।


ये भी पढ़ें-

Janmashtami 2022: वो कौन-सा कृष्ण मंदिर हैं जहां जन्माष्टमी की रात दी जाती है 21 तोपों की सलामी?

Karwa Chauth 2022: साल 2022 में कब किया जाएगा करवा चौथ व्रत, जानिए तारीख, पूजा विधि और मुहूर्त

Janmashtami 2022: कब मनाएं जन्माष्टमी पर्व? जानिए सही तारीख, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और आरती