सार
हिंदू कैलेंडर यानी पंचांग में एक साल में कुल 12 अमावस्या होती हैं। धर्म ग्रंथों में इसे पर्व कहा गया है। इस दिन तीर्थ स्नान के बाद दान और फिर पितरों की विशेष पूजा करने की परंपरा है।
उज्जैन. इस साल की पहली अमावस्या 13 जनवरी, बुधवार को है। इस बार सोमवती अमावस्या का योग सिर्फ एक बार 12 अप्रैल को बन रहा है।
कब शुभ और कब अशुभ फल देती है अमावस्या
- काशी के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्र के अनुसार सौम्य वार में पड़ने वाली अमावस्या शुभ होती है। वहीं क्रूर वार के साथ अशुभ फल देने वाली होती है।
- ज्योतिष ग्रंथों में बताया गया है कि सोम, मंगल, शुक्र और गुरुवार को अमावस्या हो तो इसका शुभ फल मिलता है। वहीं, बुध, शनि और रविवार को अमावस्या अशुभ फल देती है।
- जब तिथियों की घट-बढ़ होती है। तब ये पर्व कभी-कभी दो दिन तक भी रहता है। इसलिए जब दोपहर में अमावस्या हो उस दिन पितरों के लिए श्राद्ध-तर्पण किया जाता है। वहीं जब सूर्योदय के समय हो तो स्नान और दान किया जाता है।
अमावस्या पर क्या करें, क्या न करें…
- अमावस्या पर सुबह जल्दी उठकर तीर्थ स्नान करने की परंपरा है। ये न हो पाए तो घर में ही गंगाजल मिलाकर नहा सकते हैं।
- इसके बाद संकल्प लें और भगवान की पूजा कर के जरूरतमंद लोगों को खाने की चीजें और कपड़ों का दान दें।
- अमावस्या तिथि के स्वामी पितृदेव होते हैं और यह दिन पितरों को समर्पित होता है। इसलिए इस पर्व को पूर्वजों का दिन भी कहा जाता है।
- इस दिन पितरों की संतुष्टि के लिए श्राद्ध-तर्पण भी किया जाना चाहिए। अमावस्या पर जरूरतमंद लोगों को भोजन कराने से यह सीधा पितरों तक पहुंचता है। अगर ऐसा किया जाए तो इससे पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है।
- इस पर्व पर किसी जरूरतमंद या बेसहारा लोगों को खाना खिलाएं और दान दें। ऐसा करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
- अमावस्या का दिन बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन मांस-मदिरा और नशीली चीजों का सेवन बिल्कुल न करें। ऐसा करने से पितृदोष लगता है।
क्या है अमावस्या और पितरों का संबंध?
सूर्य की हजारों किरणों में जो सबसे खास है उसका नाम अमा है। उस अमा नाम की किरण के तेज से ही सूर्य धरती को रोशन करता है। जब उस अमा किरण में चंद्रमा वास करना है यानी चंद्रमा के होने से अमावस्या हुई। तब उस किरण के जरिये चंद्रमा के उपरी हिस्से से पितर धरती पर आते हैं। इसीलिए श्राद्धपक्ष की अमावस्या तिथि का महत्व है।