सार

हिंदू धर्म में पूजा-पाठ के दौरान कई चीजों का उपयोग किया जाता है। इन्हीं में से एक है चावल, जिसे अक्षत भी कहा जाता है। कोई भी पूजा बिना चावल यानी अक्षत के पूर्ण नहीं होती। किसी भी पूजा के समय गुलाल, हल्दी, अबीर और कुंकुम अर्पित करने के बाद चावल चढ़ाया जाता है।

उज्जैन. शास्त्रों के अनुसार, पूजन कर्म में चावल का काफी महत्व रहता है। देवी-देवताओं को तो इसे समर्पित किया ही जाता है, साथ ही किसी व्यक्ति को जब तिलक लगाया जाता है, तब भी अक्षत का उपयोग किया जाता है। आगे जानिए पूजा-पाठ आदि में क्यों किया जाता है चावल का उपयोग…

- कुंकुम, गुलाल, अबीर और हल्दी की तरह चावल में कोई विशिष्ट सुगंध नहीं होती और न ही इसका विशेष रंग होता है। इसलिए मन में यह जिज्ञासा उठती है कि पूजा में अक्षत का उपयोग क्यों किया जाता है? दरअसल, अक्षत पूर्णता का प्रतीक है। अर्थात यह टूटा हुआ नहीं होता है। इसलिए पूजा में अक्षत चढ़ाने का अभिप्राय यह है कि पूजन अक्षत की तरह पूर्ण हो।
- अन्न में श्रेष्ठ होने के कारण भगवान को चढ़ाते समय यह भाव रहता है कि जो कुछ अन्न हमें प्राप्त होता है, वह भगवान की कृपा से ही मिलता है। इसलिए हमारे अंदर यह भावना भी बनी रहे। इसका सफेद रंग शांति का प्रतीक है। इसीलिए पूजा में अक्षत एक अनिवार्य सामग्री है, ताकि ये भाव हमारे अंदर हमेशा बने रहे।
- भगवान को चावल चढ़ाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि चावल टूटे हुए न हों। चावल साफ एवं स्वच्छ होने चाहिए। शिवलिंग पर चावल चढ़ाने से शिवजी अति प्रसन्न होते हैं और भक्तों को अखंड चावल की तरह अखंड धन, मान-सम्मान प्रदान करते हैं। श्रद्धालुओं को जीवनभर धन-धान्य की कमी नहीं होती है।
- पूजा के समय अक्षत इस मंत्र के साथ भगवान को समर्पित किए जाते हैं-
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठकुङ्कमाक्ता: सुशोभिता:।
मया निवेदिता भक्त्या: गृहाण परमेश्वर॥  

- इस मंत्र का अर्थ है कि हे परमेश्वर! कुंकुम के रंग से सुशोभित यह अक्षत आपको समर्पित कर रहा हूं, कृपया इसे स्वीकार करें। इसका यही भाव है कि अन्न में अक्षत यानी चावल को श्रेष्ठ माना जाता है। इसे देवान्न भी कहा गया है। अर्थात देवताओं का प्रिय अन्न है चावल। अत: इसे सुगंधित द्रव्य कुंकुम के साथ आपको अर्पित कर रहे हैं।

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