चाणक्य नीति के तेरहवें अध्याय के पंद्रहवें श्लोक में इंसान की एक ऐसी आदत के बारे में बताया है जिसकी वजह से बनते काम बिगड़ जाते हैं।
उज्जैन. चाणक्य नीति के इस श्लोक में बताया है कि हर इंसान को अपने मन पर नियंत्रण रखना चाहिए। ऐसा नहीं करने से कई तरह की मुश्किलें बढ़ जाती हैं और कामकाज में भी मन नहीं लगता।
श्लोक
अनवस्थितकायस्य न जने न वने सुखम्।
जनो दहति संसर्गाद् वनं संगविवर्जनात।।15।।
लाइफ मैनेजमेंट
- आचार्य चाणक्य चंचलता के दुःख की चर्चा करते हुए कहते हैं जिसका चित्त स्थिर नहीं होता, उस व्यक्ति को न तो लोगों के बीच में सुख मिलता है और न वन में ही।
- लोगों के बीच में रहने पर उनका साथ जलाता है तथा वन में अकेलापन जलाता है। आशय यह है कि किसी भी काम को करते समय मन को स्थिर रखना चाहिए।
- मन के चंचल होने पर व्यक्ति न तो कोई काम ही ठीक से कर सकता है, न उसे कहीं पर भी सुख ही मिल सकता है।
- ऐसा व्यक्ति समाज में रहता है, तो अपने निकम्मेपन और दूसरे लोगों को फलता-फूलता देखकर इसे सहन नहीं कर सकता।
- यदि ऐसा व्यक्ति वन में भी चला जाए तो वहां अकेलापन उसे काटने दौड़ता है। इस प्रकार वह कहीं भी सुखी नहीं रह सकता। चित्त की चंचलता दुख देती है।
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