Chhath Puja 2022: सतयुग से चली आ रही है छठ पूजा की परंपरा, ये हैं इससे जुड़ी 4 कथाएं

Published : Oct 28, 2022, 09:51 AM IST
Chhath Puja 2022: सतयुग से चली आ रही है छठ पूजा की परंपरा, ये हैं इससे जुड़ी 4 कथाएं

सार

Chhath Puja 2022: छठ पूजा का पर्व इस बार 28 अक्टूबर, शुक्रवार से शुरू हो चुका है। 30 अक्टूबर, रविवार को अस्त होते सूर्य को और 31 अक्टूबर, सोमवार को उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देकर इस व्रत का समापन किया जाएगा।   

उज्जैन. इस बार छठ पूजा का पर्व 28 से 31 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। 4 दिनों तक चलने वाले इस व्रत में भक्त लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे कई कठोर नियमों का पालन करते हैं। वैसे तो ये पर्व बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में मुख्य रूप से मनाया जाता है, लेकिन अन्य स्थानों पर भी छठ पर्व (Chhath Puja 2022) के प्रति लोगों की आस्था देखने को मिलती है। इस पर्व से जुड़ी बहुत-सी कथाएं हैं। मान्यताओं के अनुसार, त्रेतायुग में देवी सीता और द्वापर युग में दौपदी ने भी ये व्रत किया था। आज हम आपको इस व्रत से जुड़ी कथाओं के बारे में बता रहे हैं-

राजा प्रियवद ने की छठ पूजा की शुरूआत 
सतयुग में प्रियवद नाम के एक राजा थे, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। पुत्रेष्टि यज्ञ से उनकी पत्नी गर्भवती हुई, लेकिन उन्होंने मृत पुत्र को जन्म दिया। जब राजा प्रियवद अपने मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए तो उसी समय वहां षष्ठी देवी प्रकट हुई और उन्होंने उस मृत बालक को गोद में लेकर खेल ही खेल में जीवित कर दिया। इसके बाद राजा ने कहा कि- राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने ऐसा ही किया। उस दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि थी। तभी से षष्ठी देवी यानी छठी मैया की पूजा की परंपरा चली आ रही है।

राम-सीता ने भी की सूर्यदेव की पूजा 
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीराम और देवी सीता ने भी छठ पूजा की थी। कथा के अनुसार, लंका विजय के बाद जब श्रीराम अयोध्या आए और यहां का राज-पाठ संभाला तब कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान श्रीराम और माता सीता ने उपवास किया और छठी मैया के साथ-साथ सूर्यदेव की भी आराधना की। इसके बाद उन्होंने सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। तभी से छठ पर्व की परंपरा चली आ रही है।

द्रौपदी द्वारा भी की गई थी सूर्य पूजा 
छठ पूजा की एक कथा पांडवों से भी जुड़ी हुई है। उसके अनुसार, वनवास के दौरान द्रौपदी व पांडव प्रतिदिन सूर्य पूजा करते थे। पांडवों जिस अक्षय पात्र से भोजन करते थे और दूसरों को करवाते थे, वह भी सूर्यदेव ने ही उन्हें दिया था। वनवास के दौरान उन्होंने हर वर्ष कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को छठ पूजा का व्रत भी किया। इसी व्रत के प्रभाव से पांडवों को कौरवों पर विजय प्राप्त हुई और उनका खोया वैभव लौट आया।

सूर्य पुत्र कर्ण ने की सूर्य देव की पूजा 
एक अन्य कथा के अनुसार, छठ व्रत में सूर्यदेव की पूजा की परंपरा दानवीर कर्ण ने शुरू की थी। कर्ण सूर्य पुत्र तो था ही, साथ ही वह सूर्यदेव का परम भक्त भी था। दानवीर कर्ण रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते रहते थे। उनकी पूजा से सूर्यदेव अति प्रसन्न रहते थे। छठ पूजा पर कर्ण जरूरतमंदों को उसकी इच्छा अनुसार दान देते थे। सूर्य की कृपा से ही वे महान योद्धा बने।


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