हलहारिणी अमावस्या 9 और 10 जुलाई को, इस दिन करते हैं हल की पूजा, सूर्य-चंद्रमा रहते हैं एक ही राशि में

इस बार 2 दिन (9 और 10 जुलाई) आषाढ़ अमावस्या का योग बन रहा है। ग्रंथों के मुताबिक इस तिथि का खास महत्व है। आषाढ़ अमावस्या पर गंगा स्नान, दान और पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध का विशेष महत्व होता है।

Asianet News Hindi | Published : Jul 8, 2021 3:05 AM IST / Updated: Jul 08 2021, 12:31 PM IST

उज्जैन. इस पर्व पर दान करने से कई यज्ञों का पुण्य मिलता है। ये अमावस्या वर्षा ऋतु के दौरान आती है। इस दिन हल और खेती के अन्य उपकरणों की पूजा करने की भी परंपरा है। इसलिए इसे हलहारिणी अमावस्या भी कहा जाता है।

सोमवार या गुरुवार की अमावस्या होती है शुभ
ज्योतिष के नजरिये से इस दिन सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में आ जाते हैं। इन दोनों के ग्रहों के बीच का अंतर 0 डिग्री हो जाता है। इस दिन सूर्य-चंद्रमा की युति बनती है। ज्योतिष ग्रंथों में सूर्य को धर्म-कर्म का स्वामी बताया गया है और चंद्रमा को अमृत और मन का। इसलिए इस दिन किए गए धार्मिक कामों से आध्यात्मिक शक्ति और बढ़ जाती है। सोमवार या गुरुवार को पड़ने वाली अमावस्या को शुभ माना जाता है। मंगल, बुध, शुक्र और शनि अमावस्या को सामान्य फल देने वाले मानी गई है। वहीं, रविवार को अमावस्या का होना अशुभ माना जाता है।

शनि और केतु की जन्म तिथि
ज्योतिष ग्रंथों में अमावस्या को रिक्ता तिथि कहा जाता है यानी इस तिथि में किए गए काम का फल नहीं मिलता। अमावस्या को महत्वपूर्ण खरीदी-बिक्री और हर तरह के मांगलिक काम नहीं किए जाते हैं। हालांकि इस तिथि में पूजा पाठ और स्नान-दान का विशेष महत्व है। ज्योतिष ग्रंथों में अमावस्या को शनिदेव के साथ ही केतु की जन्म तिथि भी माना गया है। इसलिए इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा का विधान है।

इस पर्व पर क्या करें
- आषाढ़ महीने की अमावस्या पर तीर्थ या किसी पवित्र नदी के जल से नहाना चाहिए। इसके बाद श्रद्धा के मुताबिक दान करने का संकल्प लें।
- इस दिन जरूरतमंद लोगों को भोजन कराने का विशेष महत्व है। अमावस्या पर पेड़-पौधे भी लगाए जाते हैं। ऐसा करने से कई तरह के दोष और जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं।
- साथ ही कई इस पर्व पर ब्राह्मण भोजन करवाने का विधान बताया गया है। साथ ही गाय, कुत्ते और कौवे को रोटी खिलाने से भी पितर खुश होते हैं।

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