Datta Purnima 18 दिसंबर को, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और रोचक कथा

अगहन मास की पूर्णिमा को दत्त पूर्णिमा (Datta Purnima 2021) कहा जाता है। इस बार ये तिथि 18 दिसंबर, शनिवार को है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान दत्तात्रेय ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों का स्वरूप हैं। मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी। इन्हीं के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय हुआ।
 

Asianet News Hindi | Published : Dec 14, 2021 7:32 AM IST

उज्जैन. दक्षिण भारत में भगवान दत्त के अनेक प्रसिद्ध मंदिर भी हैं। अगहन पूर्णिमा के मौके पर भगवान दत्तात्रेय के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसा भी कहा जाता है कि जो भक्त संकट की घड़ी में इन्हें याद करता है, उसकी मदद के लिए वे तुरंत पहुंच जाते हैं। भगवान दत्त से जुड़ी कई रोचक कथाएं हमारे धर्म ग्रंथों में मिलती हैं। 13 अखाड़ों में प्रमुख जूना अखाड़ा में भगवान दत्त की ही पूजा की जाती है।

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – 18 दिसंबर, शनिवार सुबह 07.24 से 
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 19 दिसंबर, रविवार सुबह 10.05 तक

दत्तात्रेय जयंती की पूजा विधि 
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। 
- पूजा से पहले एक चौकी पर गंगाजल छिड़कर उस पर साफ आसन बिछाएं।
- भगवान दत्तात्रेय की तस्वीर स्थापित करें। 
- इसके बाद भगवान दत्तात्रेय को फूल, माला आदि अर्पित करें।
- अब भगवान की धूप व दीप से विधिवत पूजा करें।
- अंत में आरती गाएं और फिर प्रसाद वितरण करें। 

भगवान दत्तात्रेय की कथा
एक बार महर्षि अत्रि मुनि की पत्नी अनसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु, महेश पृथ्वी लोक पहुंचे। तीनों देव साधु भेष में अत्रि मुनि के आश्रम पहुंचे और माता अनसूया के सम्मुख भोजन की इच्छा प्रकट की। तीनों देवताओं ने शर्त रखी कि वह उन्हें निर्वस्त्र होकर भोजन कराएं। इस पर माता संशय में पड़ गई। 
उन्होंने ध्यान लगाकर देखा तो सामने खड़े साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खड़े दिखाई दिए। माता अनसूया ने अत्रिमुनि के कमंडल से निकाला जल जब तीनों साधुओं पर छिड़का तो वे छह माह के शिशु बन गए। तब माता ने देवताओं को उन्हें भोजन कराया। 
तीनों देवताओं के शिशु बन जाने पर तीनों देवियां (पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी) पृथ्वी लोक में पहुंचीं और माता अनसूया से क्षमा याचना की। तीनों देवों ने भी अपनी गलती को स्वीकार कर माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह किया। तीनों देवों ने दत्तात्रेय के रूप में जन्म लिया। तभी से माता अनसूया को पुत्रदायिनी के रूप में पूजा जाता है।

 

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