Life Management: शिष्य अच्छी मूर्तियां बनाता था, फिर भी गुरु उसे टोकते रहते थे, एक दिन शिष्य गुस्सा हो गया

जब लोग को अपने काम की ज्यादा कीमत मिलने लगती है तो उन्हें लगता है कि वे इस काम में निपुण हो गए हैं और अब उन्हें इसमें कुछ और सीखने की जरूरत नहीं है। ऐसा सोचकर उन्हें अहंकार की भावना आ जाती है। जबकि सच्चाई ये होती है कि हर काम थोड़ा और अच्छा करने की गुंजाईश हमेशा बनी रहती है।
 

Asianet News Hindi | Published : Dec 15, 2021 2:38 AM IST / Updated: Dec 15 2021, 08:27 AM IST

उज्जैन.  अपने काम में सुधार लाने के लिए आपको अनुभवी व्यक्ति की सलाह माननी होगी, नहीं तो आपकी कला वहीं तक सिमट तक रह जाती है। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है कि व्यक्ति को हमेशा अपने काम में सुधार करते रहना चाहिए।

जब शिष्य को आया अपने हुनर पर घमंड
पुराने समय में एक आश्रम में गुरु और शिष्य मूर्तियां बनाने का काम करते थे। मूर्तियां बेचकर जो धन मिलता था, उससे ही दोनों का जीवन चल रहा था। गुरु के सीखाने पर शिष्य बहुत अच्छी मूर्तियां बनाने लगा था और उसकी मूर्तियां ज्यादा कीमत में बिकने लगी थी।
कुछ ही दिनों में शिष्य को इस बात घमंड होने लगा था कि वह ज्यादा अच्छी मूर्तियां बनाने लगा है, लेकिन गुरु उसे रोज यही कहते थे कि बेटा और मन लगाकर काम करो। काम में अभी भी पूरी कुशलता नहीं आई है। ये बातें सुनकर शिष्य को लगता था कि गुरुजी की मूर्तियां मुझसे कम दाम में बिकती हैं, शायद इसीलिए ये मुझसे जलते हैं और ऐसी बातें करते हैं।
जब कुछ दिनों तक लगातार गुरु ने उसे अच्छा काम करने की सलाह दी तो एक दिन शिष्य को गुस्सा आ गया। शिष्य ने गुरु से कहा कि “गुरुजी मैं आपसे अच्छी मूर्तियां बनाता हूं, मेरी मूर्तियां ज्यादा कीमत में बिकती हैं, फिर भी आप मुझे ही सुधार करने के लिए कहते हैं।”
गुरु समझ गए कि शिष्य में अहंकार आ गया है, ये क्रोधित हो रहा है। उन्होंने शांत स्वर में कहा कि बेटा जब “मैं तुम्हारी उम्र का था, तब मेरी मूर्तियां भी मेरे गुरु की मूर्तियों से ज्यादा दाम में बिकती थीं। एक दिन मैंने भी तुम्हारी ही तरह मेरे गुरु से भी यही बातें कही थीं। उस दिन के बाद गुरु ने मुझे सलाह देना बंद कर दिया और मेरी कला का विकास नहीं हो पाया। मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे साथ भी वही हो जो मेरे साथ हुआ था।”
ये बातें सुनकर शिष्य शर्मिंदा हो गया और गुरु से क्षमा मांगी। इसके बाद वह गुरु की हर आज्ञा का पालन करता और धीरे-धीरे उसे अपनी कला की वजह से दूर-दूर तक ख्याति मिलने लगी।

जीवन प्रबंधन
अपने गुरु का पूरा सम्मान करना चाहिए और गुरु की दी हुई सलाह पर गंभीरता से काम करना चाहिए। गुरु के सामने कभी भी अपनी कला पर घमंड नहीं करना चाहिए, वरना हमारी योग्यता में निखार नहीं आ पाएगा। साथ ही ये भी ध्यान रखें कि हर काम में और बेहतर करने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।

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