फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तिथि तक होलाष्टक माना जाता है। होलाष्टक होली दहन से पहले के 8 दिनों को कहा जाता है। इस बार 21 से 28 मार्च तक होलाष्टक रहेगा। ज्योतिष शास्त्र में होलाष्टक को अशुभ समय माना गया है, इसलिए इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
उज्जैन. फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तिथि तक होलाष्टक माना जाता है। होलाष्टक होली दहन से पहले के 8 दिनों को कहा जाता है। इस बार 21 से 28 मार्च तक होलाष्टक रहेगा। ज्योतिष शास्त्र में होलाष्टक को अशुभ समय माना गया है, इसलिए इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
असुरराज हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। जब ये बात हिरण्यकश्यप को पता चली तो उसने प्रह्लाद को समझाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन प्रह्लाद नहीं माना। तब हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को यातनाएं देना शुरू की, लेकिन प्रह्लाद की भक्ति में कोई कमी नहीं आई। लगातार 8 दिनों तक यातना देने के बाद हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने का निर्णय लिया और अपनी बहन होलिका की गोद में उसे बैठाकर अग्नि में समर्पित कर दिया। भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गया। प्रह्लाद को जिन 8 दिनों में यातनाएं दी गई, होलाष्टका वही समय माना जाता है।
1. होलाष्टक में पूजा-पाठ करने और भगवान का स्मरण भजन करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
2. होलाष्टक के दौरान श्रीसूक्त व मंगल ऋण मोचन स्त्रोत का पाठ करना चाहिए जिससे आर्थिक संकट समाप्त होकर कर्ज मुक्ति मिलती है।
3. होलाष्टक के दौरान भगवान नृसिंह और हनुमानजी की पूजा का भी महत्व है।
4. होलाष्टक में विवाह करना, वाहन खरीदना, घर खरीदना, भूमि पूजन, गृह प्रवेश, कोई नया कार्य प्रारंभ करना एवं अन्य प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं।