अरुणाचल प्रदेश में यहां स्थित है पवित्र कुंड, यहीं आकर भगवान परशुराम को मिली थी मातृ हत्या के पास से मुक्ति

Published : Jul 14, 2021, 11:30 AM IST
अरुणाचल प्रदेश में यहां स्थित है पवित्र कुंड, यहीं आकर भगवान परशुराम को मिली थी मातृ हत्या के पास से मुक्ति

सार

भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की कथाएं हमारे धर्म ग्रंथों में बताई गई हैं। इन्हीं में से एक अवतार है परशुराम का। इन्हें भगवान विष्णु का क्रोधावतार भी कहा जाता है। हमारे देश में ऐसे कई स्थान हैं, जिनको भगवान परशुराम से जोड़कर देखा जाता है। ऐसा ही एक स्थान है अरुणाचल प्रदेश के लोहित जिले में स्थित परशुराम कुण्ड।

उज्जैन. भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की कथाएं हमारे धर्म ग्रंथों में बताई गई हैं। इन्हीं में से एक अवतार है परशुराम का। इन्हें भगवान विष्णु का क्रोधावतार भी कहा जाता है। हमारे देश में ऐसे कई स्थान हैं, जिनको भगवान परशुराम से जोड़कर देखा जाता है। ऐसा ही एक स्थान है अरुणाचल प्रदेश के लोहित जिले में स्थित परशुराम कुण्ड। मान्यता है कि इसी कुंड में स्नान करने पर भगवान परशुराम को मातृ हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। जानिे इससे जुड़ी खास बातें…

ये है परशुराम कुंड से जुड़ी कथा
- मान्यता है की जिस फरसे से परशुराम जी ने अपनी माता की हत्या की थी वो फरसा उनके हाथ से चिपक गया था। तब उनके पिता ने कहा की तुम इसी अवस्था में अलग-अलग नदियों में जाकर स्नान करो, जहाँ तुम्हें अपनी माता की हत्या के पाप से मुक्ति मिलेगी वही यह फरसा हाथ से अलग हो जाएगा।
- पिता की आज्ञा अनुसार उस फरसे को लिए-लिए परशुराम जी ने सम्पूर्ण भारत के देवस्थानों का भ्रमण किया पर कही भी उस फरसे से मुक्ति नहीं मिली। पर जब परशुराम जी ने आकर लोहित स्तिथ इस कुण्ड में स्नान किया तो वो फरसा हाथ से अलग होकर इसी कुण्ड में गिर गया। इस प्रकार भगवन परशुराम अपनी माता की हत्या के पाप से मुक्त हुए और इस कुण्ड का नाम परशुराम कुण्ड पड़ा।

मकर सक्रांति पर होता है विशेष स्थान
- परशुराम कुण्ड को प्रभु कुठार के नाम से भी जाना जाता है। यह अरुणाचल प्रदेश के लोहित जिला की उत्तर-पूर्व दिशा में 24 किमी की दूरी पर स्थित है।
- लोगों का ऐसा विश्वास है कि मकर संक्रांति के अवसर परशुराम कुंड में एक डूबकी लगाने से सारे पाप कट जाते है।
- समय के साथ यह स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्यटकों में भी लोकप्रिय हो गया। अब यह कुण्ड लोहित की पहचान बन चुका है।
- हजारों तीर्थयात्री प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मकर संक्रान्ति पर इस कुण्ड में स्नान करने आते हैं। नेपाल और भूटान तक का भक्त यहां आकर डुबकी लगाते हैं।

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