देवताओं के वाहन से भी सीख सकते हैं लाइफ मैनेजमेंट के सूत्र

हिंदू धर्म में विभिन्न देवताओं का स्वरूप अलग-अलग बताया गया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, अधिकांश देवताओं के वाहन पशु ही हैं।

Asianet News Hindi | Published : Jan 31, 2020 6:14 AM IST

उज्जैन. स्वरूप के साथ ही देवताओं के वाहनों में भी विभिन्नता देखने को मिलती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, अधिकांश देवताओं के वाहन पशु ही हैं। देवताओं के वाहन के रूप में ये पशु किसी न किस रूप में हमें लाइफ मैनेजमेंट का पाठ भी पढ़ाते हैं। आप भी जानिए किस देवता का वाहन क्या है व उससे जुड़ा लाइफ मैनेजमेंट-

भगवान विष्णु का वाहन गरुड़
भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ है। इसे पक्षियों का राजा भी कहते हैं। गरुड़ की विशेषता है कि यह आसमान में बहुत ऊंचाई पर उड़कर भी धरती के छोटे-छोटे जीवों पर नजर रख सकता है। उसमें बहुत शक्ति होती है। वैसे ही भगवान विष्णु सबका पालन करने वाले तथा प्रत्येक जीव का ध्यान रखने वाले होते हैं। उनकी नजर सदा प्रत्येक जीव पर होती है। उन पर सबकी रक्षा का भार भी है। इसलिए वह परम शक्तिशाली हैं।

भगवान शंकर का वाहन बैल
धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान शंकर का वाहन नंदी (बैल) है। बैल बहुत ही मेहनती जीव है। वह शक्तिशाली होने के बावजूद शांत एवं भोला होता है। वैसे ही भगवान शिव भी परमयोगी एवं शक्तिशाली होते हुए भी परम शांत एवं इतने भोले हैं कि उनका एक नाम ही भोलेनाथ जगत में प्रसिद्ध है। भगवान शंकर ने जिस तरह काम को भस्म कर उस पर विजय प्राप्त की थी, उसी तरह उनका वाहन भी कामी नही होता। उसका काम पर पूरा नियंत्रण होता है।

लक्ष्मी का वाहन हाथी एवं उल्लू
माता लक्ष्मी का एक वाहन सफेद रंग का हाथी है। हाथी परिवार के साथ मिल-जुलकर रहने वाला सामाजिक एवं बुद्धिमान प्राणी है। उनके परिवार में मादाओं को प्राथमिकता दी जाती है तथा सम्मान किया जाता है। हाथी हिंसक प्राणी नही होता। उसी तरह अपने परिवार वालों को एकता के साथ रखने वाला तथा अपने घर की स्त्रियों को आदर एवं सम्मान देने वालों के साथ लक्ष्मी का निवास होता है। लक्ष्मी का वाहन उल्लू भी होता है। उल्लू सदा क्रियाशील होता है। वह अपना पेट भरने के लिए लगातार कर्म करता रहता है। अपने कार्य को पूरी तन्मयता के साथ पूरा करता है। इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति रात-दिन मेहनत करता है, लक्ष्मी सदा उस पर प्रसन्न होती हैं तथा स्थाई रूप से उसके घर में निवास करती हैं।

देवी दुर्गा का वाहन शेर
शास्त्रों में देवी दुर्गा का वाहन सिंह यानी शेर बताया गया है। शेर एक संयुक्त परिवार में रहने वाला प्राणी है। वह अपने परिवार की रक्षा करने के साथ ही सामाजिक रूप से वन में रहता है। वह वन का सबसे शक्तिशाली प्राणी होता है, किंतु अपनी शक्ति को व्यर्थ में व्यय नही करता। आवश्यकता पड़ने पर ही उसका उपयोग करता है। देवी के वाहन शेर से यह संदेश मिलता है कि घर की मुखिया स्त्री को अपने परिवार को जोड़कर रखना चाहिए तथा व्यर्थ के कार्यों में अपनी बुद्धि को न लगाकर घर को सुखी बनाने के लिए लगातार प्रयास करना चाहिए।

भगवान श्रीगणेश का वाहन मूषक
भगवान श्रीगणेश का वाहन है मूषक अर्थात चूहा। चूहे की विशेषता यह है कि यह हर वस्तु को कुतर डालता है। वह यह नही देखता की वस्तु आवश्यक है या अनावश्यक, कीमती है अथवा बेशकीमती। इसी प्रकार कुतर्की भी यह विचार नही करते की यह कार्य शुभ है अथवा अशुभ। अच्छा है या बुरा। वह हर काम में कुतर्कों द्वारा व्यवधान उत्पन्न करते हैं। श्रीगणेश बुद्धि एवं ज्ञान के देवता हैं तथा कुतर्क मूषक है, जिसे गणेशजी ने अपने नीचे दबा कर अपनी सवारी बना रखा है। यह हमारे लिए भी शिक्षा है कि कुतर्कों को परे कर उनका दमन कर ज्ञान को अपनाएं।

भगवान कार्तिकेय का वाहन मोर
भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय देवताओं के सेनापति कहे जाते हैं। इनका वाहन मोर है। धर्म ग्रंथों के अनुसार कार्तिकेय ने असुरों से युद्ध कर देवताओं को विजय दिलाई थी। अर्थात इनका युद्ध कौशल सबसे श्रेष्ठ है। अब यदि इनके वाहन मोर को देखें तो पता चलता है कि इसका मुख्य भोजन सांप है। सांप बहुत खतरनाक प्राणी है। इसलिए इसका शिकार करने के लिए बहुत ही स्फूर्ति और चतुराई की आवश्यकता होती है। इसी गुण के कारण मोर सेनापति कार्तिकेय का वाहन है।

यमराज का वाहन भैंसा
यमराज भैंसे को अपने वाहन के रूप में प्रयोग करते हैं। भैंसा भी सामाजिक प्राणी होता है। भैंसों के झुंड के सदस्य मिलकर एक-दूसरे की रक्षा करते हैं। उनका रूप भयानक होता है और उनमें शक्ति भी बहुत होती है, लेकिन वे इस शक्ति का दुरुपयोग नहीं करते। इसका अर्थ है कि यदि हम अपने परिवार के साथ मिल-जुलकर रहें तो बड़ी समस्याओं का सामना भी आसानी से कर सकते हैं। अत: यमराज उसको अपने वाहन के तौर पर प्रयोग करते हैं।

सूर्य का वाहन रथ
भगवान सूर्य का वाहन रथ है। इस रथ में सात घोड़ें हैं। जो सातों वारों का प्रतीक हैं। रथ का एक पहिया एक वर्ष का प्रतीक है जिसमें बाहर आरे होते हैं तथा छ: ऋतु रूपी छ: नेमियां होती हैं। भगवान सूर्य का वाहन रथ इस बात का प्रतीक होता है कि हमें अपना कर्म करते हुए सदैव आगे बढ़ते रहना चाहिए, तभी जीवन में प्रकाश आता है।

सरस्वती का वाहन हंस
मां सरस्वती का वाहन हंस है। हंस का एक गुण होता है कि उसके सामने दूध एवं पानी मिलाकर रख दें तो वह केवल दूध पी लेता हैं तथा पानी को छोड़ देता है। यानी वह सिर्फ गुण ग्रहण करता है व अवगुण छोड़ देता है। देवी सरस्वती विद्या की देवी हैं। गुण व अवगुण को पहचानना तभी संभव है, जब आप में ज्ञान हो। इसलिए माता सरस्वती का वाहन हंस है।

गंगा का वाहन मगर
धर्म ग्रंथों में माता गंगा का वाहन मगरमच्छ बताया गया है। इससे अभिप्राय है कि हमें जल में रहने वाले हर प्राणी की रक्षा करनी चाहिए। अपने निजी स्वार्थ के लिए इनका शिकार करना उचित नहीं है, क्योंकि जल में रहने वाला हर प्राणी पारिस्थितिक तंत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इनकी अनुपस्थिति में पारिस्थितिक तंत्र बिगड़ सकता है।

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