Mahakaal temple Ujjain: ये हैं महाकाल मंदिर की 10 खास बातें, जो बहुत कम लोग जानते हैं

Mahakaal temple Ujjain: मध्य प्रदेश के उज्जैन में कई ऐसे मंदिर हैं जो ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है। इन सभी में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग सबसे खास है। ये 12 ज्योतिर्लिगों में से एक है।
 

Manish Meharele | Published : Oct 7, 2022 11:16 AM IST

उज्जैन. 11 अक्टूबर, मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) उज्जैन में बनाए गए महाकाल लोक (Mahakal Lok) का लोकार्पण करेंगे। इसके लिए सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। महाकाल लोक का नाम पहले महाकाल कॉरिडोर था, बाद में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसका नाम बदला। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत महाकाल मंदिर का विस्तार किया जा रहा है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का वर्णन शिवपुराण सहित अन्य कई ग्रंथों में मिलता है। आज हम आपको महाकाल मंदिर से जुड़ी 10 ऐसी बातें बता रहे हैं, जो बहुत कम लोग जानते हैं। आगे जानिए कौन-सी हैं वो 10 बातें… 

सिर्फ यहीं होती है भस्म आरती
महाकाल मंदिर में रोज सुबह ज्योतिर्लिंग की भस्म से आरती की जाती है। इसे भस्म आरती कहते हैं। ये भस्म गाय के गोबर से बने कंडों से तैयार की जाती है। कहते हैं कि पहले के समय में  भस्म आरती मुर्दे की राख से की जाती थी, लेकिन बाद में इस परंपरा को बदल दिया गया। भस्म आरती को देखने के लिए दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं।

एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग
धर्म ग्रंथों में 12 ज्योर्तिर्लिगों के बारे में बताया गया है। ये सभी का विशेष महत्व है। महाकालेश्वर एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग हैं जो दक्षिणमुखी है। चूंकि दक्षिणा दिशा के स्वामी यमराज हैं, इसलिए इस ज्योतिर्लिंग का महत्व बहुत अधिक माना गया है। यमराज यानी काल के स्वामी होने के कारण ही इन्हें महाकाल कहा जाता है।

साल में एक बार खुलता है नागचंद्रेश्वर मंदिर
महाकाल मंदिर तीन हिस्सों में बंटा हुआ है। सबसे नीचे महाकाल मंदिर का गर्भगृह है जहां शिवलिंग स्थापित है। इसके ऊपर ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग है और सबसे ऊपर है नागचंद्रेश्वर। यहां भगवान शिव-पार्वती की एक अद्भुत प्रतिमा दीवार से चिपकी हुई है। इसके दर्शन साल में सिर्फ एक बार नागपंचमी पर होते हैं। बाकी समय ये मंदिर बंद रहता है।

सावन-भादौ मास में निकलती है सवारी
उज्जैन में सावन-भादौ मास में भगवान महाकाल की सवारी निकाली जाती है। ऐसा माना जाता है भगवान महाकाल अपने भक्तों का हाल-चाल जानने के लिए नगर भ्रमण करते हैं। सावन और भादौ को मिलाकर लगभग 6-7 साल निकाली जाती है। इस दौरान शहर के लोग भी भगवान महाकाल के दर्शन के लिए कई घंटों तक सड़कों पर खड़े रहते हैं।

उज्जैन के राजा हैं महाकाल
उज्जैन के लोग महाकाल को अपना राजा मानते हैं। इसी मान्यता के साथ वे हर शुभ काम से पहले महाकाल को निमंत्रण पत्र देने जाते हैं कि उनके सभी काम बिना किसी मुश्किल के आसान से हो जाएं। शायद ही कोई ऐसा स्थान हो, जहां भगवान को राजा मानकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है।

महाकाल में कई प्रसिद्ध मंदिर
महाकाल मंदिर परिवार के अंदर ही कई प्राचीन मंदिर हैं, जिनके साथ अलग-अलग मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। इनमें जूना महाकाल, बाल हनुमान, कर्कोटक महादेव, सिद्धिविनायक मंदिर, सप्तऋषि मंदिर, नवग्रह मंदिर आदि प्रमुख हैं। 

गर्भ गृह में लगा है रुद्र यंत्र
महाकाल मंदिर गर्भ गृह में रुद्र यंत्र स्थापित है। ये यंत्र चांदी से निर्मित है। रुद्र यंत्र को भी साक्षात शिव का ही अवतार माना जाता है। दिवंगत शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने 11 जुलाई 1997 को महाकाल मंदिर के गर्भगृह में रूद्र यंत्र लगवाया था। इस रूद्र यंत्र मे 271 कंडीकाए मंत्र लगे हुए हैं। 

महाकाल का भोग एफएसएसएआई द्वारा प्रमाणित
महाकाल मंदिर में मिलने वाले लड्डू प्रसाद को एफएसएसएआई (फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया) ने सेफ भोग का प्रमाण पत्र दिया है। प्रदेश में कुछ ही चुनिंदा मंदिरों को ये प्रमाण पत्र मिला है।  सेफ भोग प्लेस परियोजना में श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा संचालित निशुल्क अन्नक्षेत्र, लड्डू प्रसाद निर्माण इकाई एवं निकटतम खाद्य प्रतिष्ठानों को सम्मिलित किया गया है।

कोटितीर्थ के जल से होता है अभिषेक
मंदिर परिसर में ही एक कुंड है जिसे कोटितीर्थ कहा जाता है। प्रतिदिन रोज सुबह इसी कुंड के जल से भगवान महाकाल का अभिषेक किया जाता है। कोटि का अर्थ होता है करोड़ यानी इस कुंड में करोड़ों तीर्थों का जल है, ऐसा माना जाता है। ऐसा भी कहते हैं कि भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक के समय हनुमानजी भी इसी कुंड से जल लेकर गए थे। 

निर्वाणी अखाड़ा करता है भस्म आरती 
महाकाल मंदिर की गादी यानी कुछ प्रमुख अधिकार निर्वाणी अखाड़े के पास है जैसे बाबा महाकाल की भस्म आरती सिर्फ वही संत-साधु कर सकता है जो अखाड़े से संबंधित हो। निर्वाणी अखाड़े का केंद्र हिमाचल प्रदेश के कनखल में है। इस अखाड़े की अन्य शाखाएं प्रयाग, ओंकारेश्वर, काशी, त्र्यंबक, कुरुक्षेत्र, उज्जैन व उदयपुर में है।


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