धर्म ग्रंथों में शुक्राचार्य के बारे में कई रोचक कथाएं बताई गई हैं। ये दैत्यों के शुरु और भगवान शिव के परम भक्त माने जाते हैं। इनके बताए गए लाइफ मैनेजमेंट आज भी प्रासंगिक हैं।
उज्जैन. ग्रंथों के अनुसार, एक बार क्रोध में आकर भगवान शिव ने दैत्य गुरु शुक्राचार्य को निगल लिया था, लेकिन ये शुक्र रूप में महादेव के शरीर से बाहर निकल आए। इसलिए इनका नाम शुक्राचार्य पड़ा। इसलिए कुछ ग्रंथों में इन्हें भगवान शिव का पुत्र भी कहा गया है। दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने भी सुखी और सफल जीवन के लिए कई महत्वपूर्ण नीतियां ग्रंथों के माध्यम से बताई हैं, इन सभी को शुक्र नीति (Shukra Niti) में समाहित किया गया है। शुक्राचार्य द्वारा बताई गई नीतियां आज के समय में भी प्रासंगिक हैं। शुक्राचार्य ने अपनी एक नीति में बताया है अपनी पत्नी, पैसा और पुस्तकें कभी दूसरे व्यक्ति के हवाले नहीं करना चाहिए। जानिए इस नीति से जुड़ा लाइफ मैनेजमेंट…
1. पत्नी को किसी के भरोसे ना छोड़े
शुक्राचार्य के अनुसार पति-पत्नी का रिश्ता विश्वास पर टिका होता है। इसमें अगर जरा सी भी दरार आ जाए तो फिर उस रिश्ते में पहले जैसी कसावट नहीं रहती। इसलिए भूलकर भी अपनी पति को किसी दूसरे के आश्रित नहीं छोड़ना चाहिए। ऐसा करने से पत्नी का चरित्र खराब हो सकता है या जिसके भरोसे आपने पत्नी को छोड़ा है वह भी बहला-फुसला कर या डर दिखाकर उसके साथ दुराचार कर सकता है। इन दोनों ही स्थितियों में आपका वैवाहिक जीवन बर्बाद हो सकता है। इसलिए पत्नी को दूसरे के भरोसे नहीं छोड़ना चाहिए।
2. अपना धन किसी को न दें
दैत्यगुरु शुक्राचार्य के अनुसार, पैसा देखकर किसी भी व्यक्ति के मन में लालच आ सकता है और लालची व्यक्ति किसी का भी अहित कर सकता है। इसलिए पैसों के मामले में किसी भी दूसरे व्यक्ति पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए। धन के मामले में लोगों की नियत बदलने में देर नहीं लगती। इसलिए अपने हर लेन-देन का लेखा-जोखा अपने पास रखना चाहिए। दूसरे के सहारे धन होने पर आपका नुकसान ही होता है।
3. अपनी पुस्तकें किसी को न दें
धर्म ग्रंथों के अनुसार, ज्ञान बांटने से बढ़ता है, लेकिन अपनी पुस्तक दूसरों को देने से बचना चाहिए क्योंकि अपनी पुस्तक का जितना ख्याल आप रखते हैं उतना कोई और नहीं रख सकता। लापरवाही में लो आपकी पुस्तक को नष्ट भी कर सकते हैं और उसे खो भी सकते हैं। इन सभी स्थितियों में नुकसान आपका ही होगा। इसलिए याद रखें कि दूसरों को पुस्तक देने से उसकी क्षति की संभावना हमेशा बनी रहती है।
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